Friday, August 14, 2009

नन्द घर बाजे बधइया

आज के मुबारक मौके पर सुनिये पंडित छन्नूलाल मिश्र जी की आवाज़ में यह कम्पोज़ीशन.



और श्री कृष्णजन्माष्टमी की बधाइयां भी लीजिये!

नीचे लगे वाटरकलर्स समकालीन कलाकार फाल्गुनी दासगुप्ता की हैं:









(छन्नूलाल जी की रचना डाउनलोड यहां से करें:
नन्द घर बाजे बधइया)


(पेन्टिंग्ज़ उमा महेश्वर के ब्लॉग से साभार)

9 comments:

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

भैया कम्पोजीशन है कहाँ ? केवल मुझे ही नहीं दिखता क्या? (windows xp और safari)

चित्र बहुत पसन्द आए। राधा जी को नए जमाने की लड़की सा टच दिया है।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत बढ़िया।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

Ashok Pande said...

भाई गिरजेश जी

यदि अब तक कम्पोज़ीशन दिखाई नहीं दी है तो इस लिंक से डाउनलोड कर किसी भी एम पी थ्री प्लेयर पर सुन लीजियेगा:

http://www.divshare.com/download/8183233-b6b

समयचक्र said...

कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामना और ढेरो बधाई

Vinay said...

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ। जय श्री कृष्ण!!
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INDIAN DEITIES

Syed Ali Hamid said...

Greetings on SriKrishna Janamashtami.
Nice paintings.

मुनीश ( munish ) said...

Jai ho !

yayawar said...

छ्न्नु लाल जी की आवाज़ है कि कमाल है अशोक जी आपने ये सुना कर क्या क्या याद दिला दिया आप अन्दाज़ नहीं लगा सकते खैर बहुत बहुत शुक्रिया। बिन्दादीन महराज की एक बन्दिश है 'डगर चलत श्याम कर गहिंयां ' और ' बैठी सोचे ब्रज बाम नाही आये घनश्याम घेरि आयी बदरी ' कहीं मिले तो चिपकाइये। नज़ीर अकबराबादी की ' कन्हा का बालपन' मिले तो उसको भी। ज़ेहन में तमाम धुनें, बन्दिशें,ठ्मरियां,दादरे,खयाल, ट्प्पे और न जाने क्या क्या उमड़-घुमड़् रहा है पर अब बस। लेकिन आपने वर्धा की इस तन्हा शाम को हमारे शहर लखनऊ की याद दिला कर अच्छा किया या बुरा ये तय करना मुश्किल हो रहा है। चलते-चलते एक शेर अर्ज़ है:

ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें
इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिये हैं

अखिलेश दीक्षित
जनसंचार माध्यम एवं सम्प्रेषण विभाग
म.गां.अ.हि.विश्वविद्यालय
वर्धा

Bahadur Patel said...

bahut sundar hai.