Wednesday, September 9, 2009

हैनरी द तुलूस लौत्रेक का बचपन: पहला हिस्सा



24 नवम्बर 1864 को हैनरी द तुलूस लौत्रेक एक बेहद अमीर घर में जन्मे थे. बचपन से ही बीमार रहने वाले हैनरी के स्वास्थ्य के साथ एक के बाद एक त्रासद चीज़ें घटती गईं और इसका असर यह हुआ कि वे कुल साढ़े चार फ़ीट का कद पा सके.

एक सामान्य देह के साथ एक सामान्य शारीरिक जीवन न बिता पाने लायक रह चुके होने के लिए अभिशप्त हैनरी ने अपना सारा जीवन अपनी कला पर वार दिया. पेरिस के मोन्तमार्त्रे इलाके में अपने जीवन का आधे से ज़्यादा हिस्सा बिताते हुए उन्होंने उस इलाके में बहुतायत में पाए जाने वाले नाचघरों और वैश्यालयों की ज़िन्दगी के छुए-अनछुए पहलुओं पर अपनी कूची चलाई और एक से एक शानदार तस्वीरें बनाईं. वहां का एक मशहूर नृत्यघर 'मूलां रूज़' तो समूचे संसार में इसी महान कलाकार के नाम के साथ जुड़ चुका है.





आज हैनरी द तुलूस लौत्रेक के बग़ैर १८८० के दशक में उभरे उस क्रान्तिकारी इम्प्रैशनिस्ट आन्दोलन की कल्पना तक नहीं की जा सकती, जिसने आने वाले कई दशकों के लिए चित्रकला के संसार की परिभाषा ही बदल डाली थी. विन्सेन्ट वान गॉग, क्लाउद मॉने, मैने, पॉल गोगां, हैनरी रूसो और तमाम अन्य महान नामों की सूची हैनरी द तुलूस लौत्रेक के ज़िक्र के बग़ैर अधूरी है.



गलियों में लोग उसके कद और उसकी आकृति के कारण उसका मज़ाक उड़ाया करते थे - नतीज़तन १८९० के दशक के आते न आते वह भीषण अल्कोहोलिक बन गया. उसे एक सैनेटोरियम में भर्ती कराया गया और बाद में उसकी मां उसे अपने साथ ले गई, लेकिन कुछ हुआ नहीं.

९ सितम्बर १९०१ के दिन वह अपने घर में मर गया.

यानी आज हैनरी द तुलूस लौत्रेक की पुण्यतिथि है. आज से कुछ साल पहले नाचीज़ ने विन्सेन्ट वान गॉग के जीवन पर आधारित पुस्तक 'लस्ट फ़ॉर लाइफ़' का अनुवाद करते हुए यह तय किया था कि मौका मिलते ही कुछ अन्य कलाकारों के जीवनवृत्तों के अनुवाद अवश्य करूंगा. तो इस महान महबूब चित्रकार को नमन करते हुए उस श्रृंखला को जारी रखते हुए पियरे ला म्यूर की लिखी हैनरी द तुलूस लौत्रेक की जीवनी 'मूलां रूज़' के के पहले अध्याय के अनुवाद का पहला हिस्सा प्रस्तुत है. दूसरा कल.





मूलां रूज़ - अध्याय: एक

"प्लीज़ मम्मा, हिलो मत! मैं आपका पोर्ट्रेट बनाने जा रहा हूं."

"क्या, एक और! लेकिन हेनरी तुमने कल ही तो मेरा पोर्ट्रेट बनाया था." तुलूस-लौत्रेक की काउन्टेस, अदेले ने अपना कशीदाकारी का काम गोद में रखा और लॉन पर अपने सामने झुके बैठे नन्हे लड़के पर मुस्कराते हुए निगाह डाली. "कल से आज तक मुझमें कोई बदलाव तो नहीं आया ना, या आया है? मेरे पास वही नाक है, वही मुंह, वही ठोड़ी ..."

अदेले की निगाह काले बालों के छितराव, दिल के आकार वाले चेहरे के हिसाब से ज़्यादा बड़ी याचनारत भूरी आंखों, सिलवट पड़े हुए सेलर सूट और खुली स्केचबुक पर उत्सुकता के साथ ठहरी हुई टेढ़ी पेन्सिल पर एक साथ पड़ी. रिरी, मेरा सबसे प्यारा रिरी! उनके पास बस वही अपना था, लेकिन वह हर बाक़ी चीज़ की भरपाई के लिए पर्याप्त था - वे निराशाएं, पछतावे, अकेलापन.

"तुम डन का पोर्ट्रेट क्यों नहीं बनाते?" उन्होंने सुझाव दिया.

"मैं बना चुका हूं, दो बार." उसने मेज़ के नीचे ऊंघते गोर्डन सेटर की ओर निगाह डाली, जिसकी नाक इस वक़्त उसके पंजों के बीच में थी. "इसके अलावा वह अभी सोया हुआ है, और जब वह सो रहा होता है, उसके चेहरे पर कोई भाव ही नहीं होते. वैसे मैं तो आपकी तस्वीर ही बनाऊंगा. और आप ज़्यादा सुन्दर भी हैं."

इस भोली तारीफ़ को उन्होंने गम्भीरता के साथ स्वीकार किया.

"ठीक है, पर सिर्फ़ पांच मिनट. उस से एक मिनट भी ज़्यादा नहीं." एक गरिमामय भंगिमा के साथ उन्होंने अपना चौड़ा गार्डन हैट उतार दिया जिससे उनके मुलायम भूरे बाल नज़र आने लगे - बीच से बनाए गए बाल कानों के ऊपर पहुंचते-पहुंचते पंखों की तरह मुड़ जाते थे. "सवारी के लिए चलने का वक्त हो ही गया है. जोसेफ़ कभी भी आता होगा. आज हम कहां जाने वाले हैं?"

उसने कोई उत्तर नहीं दिया. उसकी पेन्सिल अभी से काग़ज़ पर दौड़ना शुरू कर चुकी थी.

सितम्बर १८७२ की इस चमकदार दोपहर को वे दोनों ही थे वहां - दुनिया से दूर, पुरानी ख़ामोश और दोस्ताना चीज़ों की संगत में और प्रसन्न. उनके चारों तरफ़ हरा लॉन था. आकाश में सूर्य चमक रहा था. घोंसलों के किनारों पर गपशप में मसरूफ़ पक्षी थे जो कभी कभार रोज़मर्रा के कामकाज के वास्ते ज़रा देर को फ़ुर्र हो जाया करते. पेड़ की पीली पत्तियों की सघनता के बीच से अपनी मीनारों और खिड़कियों के साथ एक मध्यकालीन किला उभरता सा उठता था.

एक क्षण पहले ही अपनी नीली पोशाक पहने मोटे और गम्भीर दिखते "ओल्ड टॉमस" ने अवसर के हिसाब से किसी रईस घर के खा़नसामे के नख़रों के साथ चाय की ट्रे हटाई थी. उसके पीछे मात्र अट्ठावन साल का जवान डोमिनिक भी था जिसे काम करते हुए बारह साल ही हुए थे. कुछ मिनटों के बाद आन्ट आर्मान्दीन ने, जो किसी की आन्ट नहीं बल्कि दूर की रिश्तेदार थीं और सात साल पहले एक हफ़्ता रहने भर को आई थीं, अपना अख़बार मोड़कर "कुछ चिट्ठियां लिखने" की बात कहकर उन दोनों से इजाज़त ली थी, जिसका मतलब होता था कि वे डिनर से पहले कुछ देर को सोएंगी.

आज रात जोसेफ़ नाम का गठीला कोचवान आकर मादाम काउन्टेस को बग्घी के पहुंचने की सूचना देगा. आज पुरखों की हंसती तस्वीरों और फ़ानूसों से सजे एक ज़रूरत से ज़्यादा बड़े डाइनिंग रूम में बुज़ुर्ग वेटरों द्वारा एक साधारण किन्तु औपचारिक डिनर परोसा जाएगा. मीठा खाने के बाद युवा काउन्ट विशाल सीढ़ीयां चढ़कर अपने शयनकक्ष में पहुंचेगा जहां उसकी मां उससे मिलेंगी. मां उसे ईसा मसीह के बारे में बताएंगी और यह भी कि वह कितना अच्छा लड़का है. वे उसे जोन ऑफ़ आर्क के बारे में बताएंगी और उस युद्ध के बारे में जिस में उस के पर-पर-पर-पर-पर दादा रेमण्ड चतुर्थ काउन्ट दे तुलूस लौत्रेक ने ईसाई योद्धाओं को येरूशलम तक पहुंचाया था जहां उन्होंने दुष्ट तुर्कों से पवित्र मकबरे को बचाया था. फिर एक चुम्बन, एक आखिरी दुलार. एक उनींदा "गुडनाइट मम्मा". फिर कम्बल में घुस जाना. एक आखिरी निगाह डाल कर मां अपने बगल वाले शयनकक्ष में चली जाएंगी.

खिड़कियों पर से रोशनियां एक एक कर बुझाई जाएंगी. और जैसा कि सदियों से होता आया था, रात अपना काला लबादा तुलूस के काउन्टों के किले के ऊपर डाल कर पसर जाएगी.

"आज हम कहां जाने वाले हैं?" उन्होंने फिर से पूछा. "पुराने खेतों की ओर या सेन्ट एन के चर्च में?"

उसने व्यस्तता में सिर हिलाया जिसका मतलब था उसे दोनों जगहों में कोई दिलचस्पी नहीं.

उनके चेहरे की गम्भीर उदासी में कोई चीज़ तिड़क कर रह गई. बेचारा रिरी, उसे इस बात का ज़रा भी भान नहीं था कि वह उनकी अन्तिम सवारी होने वाली है. उसने अभी यह नहीं सीखा था कि जीवन लगातार दोहराई जाती विदाओं के सिवा कुछ नहीं और यह कि आने वाला कल आज जैसा ही नही होता. अब ऐसा कभी नहीं होगा जब वह घोड़ों की लगामें सम्हालती अपनी मां से चिपट पाएगा, या गांव की सड़कों में सवारी के मज़े उठाता हुआ कुछ भी गाता रहेगा: न वह बग्घी के पीछे हाथ बांधे बैठे जोसेफ़ को चिढ़ा सकेगा, न ही अपनी चमकती निगाहों के यहां-वहां दौड़ाता अनगिनत सवाल पूछा करेगा. उनकी अन्तरंगता का पहला धागा ढीला पड़ने वाला था. धीरे धीरे बाक़ी धागे भी निकलना शुरू हो जाएंगे और आख़िरकार बाक़ी लड़कों की तरह वह भी चला जाएगा...

अदेले के होंठ एक आह से थर्राए.

"हिलो मत!" वह चहका "मैं मुंह बना रहा हूं और यही सबसे मुश्किल होता है ..."

अदेले की आंखों ने एक बार फिर से उस झुकी हुई नन्ही आकृति को देखा. बहुत ध्यान से काम करने के कारण उसका निचला होंठ अन्दर को चला गया था. पेन्टिंग का यह अजीब शौक़ उसे कहां से मिला है विरासत में? उनके लिए यह किसी पहेली की तरह था जबकि वे उसके सबसे अंतरंग विचारों को इतनी अच्छी तरह समझती थीं - उसे पड़ने वाले अड़ियलपन के दौरे, प्रेम और स्वीकृति के लिए उसकी चाह, उसके नन्हे दिल की वह भूख जिनके चलते वह लड़ाइयों के बीच में ही उनकी बांहों में धंस जाया करता था. उनका अचरज उअर भी ज़्यादा इस लिए था कि उअसके भीतर कला के लिए कोई विशेष रुझान नहीं था. ख़ैर समय के साथ यह भी गुज़र जाएगा जैसे समुद्री कप्तान बनने का उसका सबसे हालिया फ़ैसला ....

"क्या मैंने तुम्हें कभी उस समय के बारे में बताया था जब तुम मौश्ये आर्चबिशप के लिए एक बैल का स्केच बनाना चाहते थे?"

"वो मोटा आदमी जो हमारे यहां खाना खाने आता है?"

"खाना खाने नहीं हेनरी, 'डिनर पर' और -" अब उन्होंने उस कठोर स्वर में बोलना शुरू किया जिसकी अब उसे आदत पड़ चुकी थी "तुम ने मौश्ये को मोटा आदमी नहीं कहना चाहिए."

"लेकिन वो मोटा है. है ना?" उसने कुछ न समझने की मुद्रा में अपनी गोल आंखें ऊपर उठाईं, "वह करीब करीब टॉमस जितना मोटा तो है ही."

"हां. लेकिन वे ईश्वर के बन्दे हैं और महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं. इसीलिए हम उनकी अंगूठी को चूमते हैं और कहते हैं 'हां श्रीमान' या 'नहीं श्रीमान'"

"लेकिन..."

"ख़ैर" आगे बहस की संभावना को थामते हुए उन्होंने जल्दी से कहा "ये तुम्हारे भाई रिचर्ड के बपतिस्मे की बात है..."

"मेरा भाई? मुझे नहीं पता था कि मेरा कोई भाई भी है. कहां है वो?"

"वह स्वर्ग वापस चला गया. कुछ ही महीने रहा यहां"

"ओह...." उसकी निराशा असली थी, लेकिन बहुत संक्षिप्त. "तब उसका बपतिस्मा कराने की क्या ज़रूरत थी?"

"क्योंकि स्वर्ग में जाने के लिए हर किसी का बपतिस्मा कराना होता है."

"मेरा भी?"

"हां, और क्या!"

इस से उसकी उत्सुकता संतुष्ट हुई और वह दुबारा ड्रॉइंग में लग गया.

(जारी)

(पेन्टिंग्स के बारे में: क्रमशः . रेने प्रिन्स्तौ द्वारा बनाया गया उन्नीस साल के हैनरी का पोर्ट्रेट . हैनरी द तुलूस लौत्रेक की पेन्टिंग 'द किस' ३, ४ और . हैनरी द तुलूस लौत्रेक द्वारा बनाए गए मूलां रूज़ के असंख्य चित्रों में से चयनित)

3 comments:

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

हेनरी के बारे में इतने विस्तार से बताने का आभार।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

अफ़लातून said...

तुलु की पुण्य तिथि पर इससे ज्यादा जरूरी और क्या किया जा सकता था किसी हिन्दी लेखक के द्वारा ! सलाम !
पढ़ते रहेंगे । आप आराम से लिखें और प्रकाशन से पहले खुद देखना न भूलें ।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

बढिया जानकारी, बढिया चित्र। खोजपूर्ण लेख के लिए आभार॥