Wednesday, September 9, 2009

हैनरी द तुलूस लौत्रेक का बचपन: दूसरा हिस्सा

हैनरी का बनाया विन्सेन्ट वान गॉग का चित्र


(हैनरी द तुलूस लौत्रेक की पुण्यतिथि के अवसर पर पिछली पोस्ट से जारी)

"इसका मतलब हुआ कि मरने के बाद मैं स्वर्ग में जाऊंगा." उसकी आवाज़ में यह बात तय हो जाने की प्रसन्नता थी.

"हां शायद ... अगर तुम एक अच्छे लड़के बनोगे और दिल से भगवान को प्यार करोगे तो."

"वो मुझ से नहीं हो पाएगा" उसके स्वर में अन्तिम फ़ैसला था "मैं उसे पूरे दिल से प्यार नहीं कर सकता क्योंकि में तुम्हें ज़्यादा प्यार करता हूं."

"तुम्हें ऐसी बातें नहीं कहनी चाहिए हेनरी."

"लेकिन मैं कहूंगा!" उसकी आंखों में बच्चों वाली ज़िद थी जिसके आगे आपको हथियार फ़ेंक देने होते हैं "मैं वाक़ई आपको ज़्यादा प्यार करता हूं."

घुटनों पर बांहें धरे वे उसे देख रही थीं. इस बात पर वह कभी हार मानने वाला नहीं. लेकिन शायद किसी बच्चे से ऐसे भगवान को प्यार कर्ने को कहना कुछ ज़्यादा ही होता है जो आपको न गले से लगा सके न बिस्तर में सुला सके....

"ठीक है. मैं भी तुम्हें प्यार करती हूं हेनरी" उन्होंने कहा. वे जानती थीं उसे उनकी तरफ़ से पूरी तरह से आश्वस्ति चाहिए थी. "और अब बार बार बीच में टोकना बन्द करो वरना मैं तुम्हें वो बैल के बारे में नहीं बताऊंगी. तो ... ये कोई चार साल पुरानी बात है, तुम ज़रा से थे, कुल तीन साल के ..."

बहुत कोमल आवाज़ के साथ उन्होंने उसे रिचर्ड के बप्तिस्मे का कि़स्सा बताया. हेनरी को इस घटना की ज़रा भी याद नहीं थी. रस्म पूरी हो जाने पर आर्चबिशप ने सभी लोगों से पवित्र रजिस्टर में दस्तख़त करने को कहा. अब तक हेनरी चुप़चाप बैठा रहा था पर दस्तख़त की बात आने पर वह भी ऐसा करने पर अड़ गया.

"लेकिन मेरे बच्चे," पादरी ने कहा था " जब तुम्हें लिखना ही नहीं आता, तुम द्स्तख़त कैसे कर सकोगे?"

हेनरी ने तनिक ढिठाई से जवाब दिया था, " तब मैं एक बैल का स्केच बना दूंगा!"

इस क़िस्से से उसे ख़ास मज़ा नहीं आया और एक झतके के साथ उसने पेन्सिल का आखिरी स्ट्रोक चलाया.

"ये रहा!"

किसी विजेता के भाव से हेनरी ने स्केच अपने हाथों में ले कर उनके सामने किया.* (लॉत्रेक के बचपन में बनाए आश्चर्यजनक पोर्ट्रेट्स एल्बी म्यूज़ियम में प्रदर्शित हैं.)

"देखा पांच मिनट भी नहीं लगे!"

उन्होंने पोर्ट्रेट की तारीफ़ का दिखावा किया : "बढ़िया! बहुत बढ़िया! तुम एक असली आर्टिस्ट हो!" उन्होंने स्केचबुक को गार्डन-बेन्च पर रखा..

"यहां आकर मेरे पास बैठो, रिरी."

वह अचानक चौकन्ना हो गया. मम्मा के अलावा उसे और कोई रिरी नहीं कहता था. ऐसा भी कभी-कभार ही होता था. यह उन दोनों के बीच का गुप्त पासवर्ड था. या तो उस पर कोई बड़ी मेहरबानी होने वाली होती थी - अगर वह इतवार की प्रार्थना में असाधारण रूप से शान्त बैठा रहता या सौ तक गिनती गिन देता - या किसी अपशकुन या बुरी ख़बर जैसा कुछ होता था.

"तुम सात साल के हो गए हो" उन्होंने शुरू किया, वह उनसे लिपट कर और पास आ गया, "तुम एक बड़े लड़के हो अब. तुम एक बड़े जहाज़ के कप्तान बनना चाहते हो ना? दुनिया भर में घूम कर शेरों और बाघों के स्केच बनाना चाहते हो ना?"

उसने बेचैन सहमति में सिर हिलाया. उन्होंने उसे अपने नज़दीक खींचकर मानो उस आघात को ज़रा हल्का करने का जतन किया.

"तो - अब तुम्हारे स्कूल जाने का वक़्त आ गया है."

"स्कूल?" अस्पष्ट तरीके से परेशान होते हुए उसने दोहराया, "लेकिन मैं स्कूल जाना नहीं चाहता."

"मुझे पता है मेरे छोटू, लेकिन तुम्हें जाना ही होगा. सारे छोटे लड़के स्कूल जाते हैं." उन्होंने उसके काले बालों को सहलाया. "पेरिस में फ़ोन्तेन्स नाम का एक बड़ा स्कूल है. सारे अच्छे लड़के वहीं जाते हैं. वहां वे साथ साथ खेलते हैं और मज़े करते हैं. कितने सारे मज़े!"

"लेकिन मैं स्कूल जाना नहीं चाहता!"

उसकी आंखों में आंसू भर आए. उसकी समझ में पूरी तरह नहीं आया कि मां के शब्दों का वास्तविक तात्पर्य क्या था, लेकिन उसे अस्पष्ट सा आभास हुआ कि उस के आसपास दुनिया ढह रही है: कुत्तागाड़ी, मम्मा और आन्ट आर्मान्दीन से मिलने वाले पाठ, खच्चर की सवारी, उसका ड्रम, जोसेफ़, अस्तबलों में जाना, एनेट के साथ गलियारों में लुकाछिपी खेलना ....

"श्श्श्श!" उन्होंने होंठों पर उंगली रखते हुए कहा "अच्छे बच्चे कभी नहीं कहते 'हम ये नहीं चाहते.' और तुम रोओ मत. तुलूस लॉत्रेक कभी नहीं रोया करते."

उन्होंने उसकी आंखें पोंछी, नाक साफ़ की और उसे विस्तार में बताया कि तुलूस लॉत्रेक परिवार के किसी भी सदस्य ने क्यों रोना नहीं बल्कि हर वक़्त हंसते रहना चाहिए. उन्होंने उसे उस के पर-पर-पर-पर-पर दादा रेमण्ड चतुर्थ काउन्ट दे तुलूस लौत्रेक और उनके पहले अभियान के बारे में बताया.

"इस के अलावा, " उन्होंने जोड़ा "जोसेफ़ और एनेट भी तुम्हारे साथ आ रहे हैं."

"वो भी?"

इस से उसे थोड़ी राहत पहुंची.

एनेट मम्मा की पुरानी नर्स थी. वह बहुत छोटी थी. उसकी आंखें चमकदार नीली थीं और उस के चेहरे पर झुर्रियां घिरी हुई थीं. उसके दांत भी नहीं थे और वह अपने होंठों को अन्दर की तरफ़ खींच लिया करती थी जिससे लगता था कि उस का मुंह भी नहीं है. वह सुबह से शाम तक गलियारों में यहां से वहां भागा करती थी, उसके सफ़ेद टोपे के किनारे किसी चिड़िया के पंखों की तरह फड़फड़ाया करते. ऊन कातते समय वह हेनरी को अपने पास एक ऊंचे स्टूल में बैठने दिया करती और तीखे स्वर में उसे लोकगीत सुनाया करती.

जोसेफ़ की उपस्थिति भी विश्वासवर्धक थी. वह हमेशा से हर जगह था - 'ओल्ड टॉमस' - बग़ीचे में, डाइनिंग रूम में लगे पोर्ट्रेट्स में. हालांकि वह बमुश्किल मुस्कराता था, दोस्त वह बहुत पक्का था; और इस के अलावा वह हेनरी के पोर्ट्रेट्स के लिए अच्छा विषय था: उसकी पंखों वाली हैट, घुटनों पर ख़त्म हो जाने वाली सफ़ेद पतलून और कोचवान का नीला कोट.

"और इतना ही नहीं है" उन्होंने अपनी बात जारी रखी "पेरिस में तुम्हारी मुलाकात मालूम है किस से होने वाली है ... सोचो ज़रा ..." एक क्षण के लिए उन्होंने आखिरी बात को रोके रखा, "वहां तुम्हें पापा मिलेंगे."

"पापा!"

अच्छा! इस बात ने चीज़ों को बिल्कुल ही बदल दिया. पापा बहुत शानदार थे. जब भी वे यहां आते थे, पढ़ाई भुला दी जाती थी और रूटीन पूरी तरह बिगड़ जाया करता. जीवन में एक ख़ास तरह की साहसिकता आ जाया करती. पुराना क़िला उनके बूटों की धमक और उनकी आवाज़ की गूंज के कारण जैसे नींद से जाग जाया करता. वह पापा के साथ लम्बी सवारी पर जाया करता और वे उसे घोड़ों, युद्धों और शिकार-अभियानों की कहानियां सुनाया करते.

"तो क्या वहां हम उनके साथ उनके महल में रहेंगे?" हेनरी की आंखें ख़ुशी से चमकने लगीं.

"पेरिस में लोग महलों में नहीं रहते. वे या तो होटलों में रहते हैं या सुन्दर अपार्टमेन्टों में जिनकी बालकनियों से नीचे सड़क पर देखा जा सकता है."

"लेकिन हम रहेंगे तो उन के साथ ही ना?" उसकी आवाज़ में अब थकान आने लगी थी.

"हां हां, कुछ दिनों के लिए ज़रूर. वो तुम्हें सवारी के लिए Bois de Bologne ले जाएंगे - वहां विशाल जंगल के बीच एक झील है जिसमें लोग जाड़ों में स्केटिंग किया करते हैं. पेरिस में जाड़ों में बर्फ़ पड़ती है न इसलिए. और वे तुम्हें सर्कस भी दिखाएंगे. असली शेर, जोकर और हाथी! ओह ... पेरिस में कितनी सारी अच्छी-अच्छी चीज़ें होती हैं - कठपुतलियों के नाच, बच्चागाड़ियां ... "

उसकी आंखें और होंठ खुले हुए थे; सुनते वक्त वह अपनी पलकों के कोरों पर कांप रहे आंसुओं को पोंछना भूल ही गया.

आने वाले दिनों में, महल के भीतर सब कुछ अस्तव्यस्त हो गया. हर दिशा से बहकी हुई मुर्गियों जैसे लोग महल में आने लगे थे. हेनरी के साथ खेलने के बजाय मम्मा अब 'ओल्ड टॉमस', मुख्य माली ऑगस्ट और अस्तबल के इंचार्ज सिमोन के साथ लम्बे लम्बे वार्तालापों में व्यस्त रहा करतीं. गलियारों में खुले हुए सन्दूक धरे रहते थे. घुड़सवारी के पाठ बन्द हो गए थे ....

फिर एक सप्ताह बाद, विदाई की उत्तेजना थी. "अलविदाएं", गालों पर थपकियां, रेलवे स्टेशन, युद्ध के लिए तत्पर होता जैसा भाप फेंकता इंजन. उसके बाद रेल के कम्पार्टमेन्ट के भीतर - अजीब सी सीटें, सामान रखने की जाली और ऊपर-नीचे होने वाली खिड़कियां.

तीन तीखी सीटियां, लोहे के पहियों की खड़खड़ और लोगों से भरा स्टेशन पीछे की तरफ़ छूटना शुरू हो गया.

जल्द ही एल्बी के ग्रामीण इलाके की झलक दिखने लगी: पेड़, नदियां, खपरैलों वाले फ़ार्महाउस - उस ने यह सब कभी नहीं देखा था.

"देखो मम्मा! देखो!"

शुरू में यह उत्तेजनापूर्ण था, फिर थकानभरा हुआ और आखिरकार उस से ऊब होने लगी.

उसे नींद आ गई.

उसे अगली बात यही पता चली कि गाड़ी पेरिस के उपनगरों से होती हुई रफ़्तार में भाग रही थी और उसका चेहरा खिड़की से सटा हुआ था.

"देखो मम्मा, बारिश हो रही है!"

सलेटी छत वाली ऊंची वर्गाकार बदसूरत इमारतें जिनकी खिड़कियों से सूखते कपड़े झूल रहे थे. फ़ैक्ट्रियों की धुंएदार चिमनियां. मकानों के बईच टूटी बाड़ों वाले बग़ीचों के टुकड़े जिनमें झाड़-झंखाड़ उग रहा था. बारिश में भीगते मुड़े-तुड़े लोहे के ढेर. कीचड़भरी गलियों में बरसातियों में लिपटे,सिर झुकाए, चींटियों जैसे स्त्री-पुरुष आ-जा रहे थे. आल्बी के नीले आसमान के बदले यहां था सलेटी बादलों का एक झुंड. इस कदर कुरूप, यह पेरिस ...

आखिरकार ट्रेन एक इत्मीनानभरी सांस के साथ थम गई. नीले ओवरऑल पहने कुछ मजबूत आदमी कम्पार्टमेन्ट में घुसे और उनका सामान इस तरह उठा कर बाहर निकले जैसे वे अपना सामान ले जा रहे हों. मम्मा ने दस्ताने पहने और अपना स्कार्फ़ ठीक किया.

प्लेटफ़ॉर्म पर प्रतीक्षारत चेहरों का हुजूम था.

और वहां भीड़ में सबसे ऊंचे, अपनी छंटी हुई दाढ़ी के साथ मुस्कराते , चमकदार काली हैट में बहुत सुदर्शन दिखते, बांह के नीचे सुनहरे मूठ वाली छड़ी दबाए, कोट पर सफ़ेद कार्नेशन का फूल लगाए खड़े थे - पापा!

सैल्फ़ पोर्ट्रेट


(फ़िलहाल के लिए इस किताब से इतना ही.)

2 comments:

अफ़लातून said...

स्थगित भी नहीं ?

के सी said...

दो घूंट के बाद बोतल छिपा दी गई है
और प्यालों को खाली लुढकने के लिये छोड़ दिया गया है.