Sunday, May 9, 2010

भूल मत जाओ अपने मस्तिष्क में छिद्र बनाना


*** कविता के बारे में ( गद्य और पद्य में ) बहुत कुछ कहा गया है। काव्यशास्त्र की तमाम पोथियाँ 'कविता क्या है ?' के प्रश्नोत्तरों से भरी पड़ी हैं फिर भी कवि , आचार्य , पाठक और भावक के पास इस सिलसिले को लेकर सवाल कम नहीं हुए हैं ( और शायद होंगे भी नहीं )। इसी के साथ निरन्तर यह भॊ पूछा जाता रहा है कि कवि / कवियों को क्या करना चाहिए , उन्हें कैसा होना चाहिए और वास्तव में वे हैं कैसे..आदि इत्यादि। सवाल कम नहीं हैं , जवाब भी कम नहीं खोजे , बनाए , गढ़े गए हैं। कविता है और रहेगी , सवाल हैं और रहेंगे। जवाब आयेंगे और नए जवाबों की संभावना हमेशा बनी रहेगी। आज आचार्यों और उस्तादों की बड़ी - बड़ी , गुरु - गंभीर परिभाषाओं में न उलझकर अमरीकी कवि , कथाकार और 'पोएट लौरिएट' के सम्मान से नवाजे जा चुके अल यंग की एक बहुचर्चित कविता के माध्यम से कवियों को दी जाने वाली नसीहतें या कवि होने की हिदायतों पर एक निगाह डालने की कोशिश इस कविता के माध्यम से करते हैं ....

 कवियों के लिए / अल यंग
( अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह )


बने रहो सौन्दर्य से भरपूर
किन्तु भूमिगत मत रहो लम्बी अवधि तक
बदल मत जाओ बास मारती छछूंदर में
न ही बनो -
        कोई कीड़ा
           कोई जड़
               अथवा शिलाखंड।

धूप में थोड़ा बाहर निकलो
पेड़ों के भीतर साँस बन कर बहो
पर्वतों पर ठोकरें मारो
साँपों से गपशप करो प्यार से
और पक्षियों के बीच हासिल करो नायकत्व ।

भूल मत जाओ अपने मस्तिष्क में छिद्र बनाना
न ही पलकें झपकाना
सोचो, सोचते रहो
घूमते रहो चहुँ ओर
तैराकी करो धारा के विपरीत।

और...
कतई मत भूलो अपनी उड़ान।

7 comments:

nilesh mathur said...

बहुत ही सुन्दर पंक्तिया लिखी है अल यंग साहब ने !

अजित वडनेरकर said...

नैसर्गिक सरोकारों से जुड़े रहने का प्रबल आग्रह....

हिंदीब्लॉगजगत said...

अच्छा लिखा है.
क्या हिंदी ब्लौगिंग के लिए कोई नीति बनानी चाहिए? देखिए

abcd said...

words of wisdom है बाबा यन्ग के !

abcd said...

....and may be..WISDOM is not subjected to age ,but to the exposures mentioned .

आवारागर्द said...

बहुत दिनों बाद पढ़ने को मिली इतनी ताज़ी लाइनें

अजेय said...

क़तई नहीं भूलूँगा अपनी उड़ान !