Friday, December 31, 2010

साल की आखिरी पोस्ट

वर्ष २०१० की यह संभवतः कबाड़ख़ाने में अंतिम पोस्ट है. देहरादून से इसे हमारे कबाड़ी शिवप्रसाद जोशी ने भेजा है.

जाना नए साल में इंतज़ार में

शिवप्रसाद जोशी



डॉक्टर बिनायक सेन के मरीज़ उनका इंतज़ार कर रहे हैं. ख़ौफ़ के मारे लोग उनका इंतज़ार कर रहे हैं. उनकी पत्नी और मां उनका इंतज़ार कर रही हैं. मानवाधिकार कार्यकर्ता उनका इंतज़ार कर रहे हैं. नॉम चॉमस्की, अमर्त्य सेन उनका इंतज़ार कर रहे हैं, अरुंधति रॉय उनका इंतज़ार कर रही हैं, कई कवि लेखक पत्रकार, अध्यापक, चिकित्सक, ब्लॉगर्स और समस्त एक्टिविस्ट बिरादरी उनकी रिहाई का इंतज़ार कर रही है.

चार जनवरी बिनायक सेन का जन्मदिन है. वो छत्तीसगढ़ की एक जेल में बंद हैं. उनकी रिहाई की कोशिशें जारी हैं. कौन बनेगा करोड़पति के इयरएंडर में अमिताभ बच्चन कह रहे हैं कि न किसी के आने से कोई फ़र्क पड़ता है न किसी के जाने से. न जाने वो ऐसा क्यों कह रहे हैं. न जाने ऐसा कहने के पीछे उनका क्या तात्पर्य है.

साल 2010 के आखिरी कुछ दिनों में जब अख़बार, टीवी और तमाम न्यू मीडिया बीते साल की रंगीनियों, लाइफ़स्टाइल और कथित बड़ी ख़बरों और सनसनीखेज़ विवादों की झांकियां प्रस्तुत कर रहा था, बिनायक सेन को जेल गए कई सप्ताह हो गए थे. 2010 में अर्जित सफलताओं के चमकीले ब्यौरे थे. प्रसिद्धियों और बुलंदियों और इमारतों और फिल्म और खेल के सितारों की चर्चाएं थीं, मुन्नी बदनाम और शीला की जवानी जैसी फिल्मी विद्रूपताओं के पांडित्य और लालित्य भरे तुलनात्मक सचित्र आकलन थे. अरुंधति रॉय की चर्चा नीरा राडिया और नीरा यादव के साथ तुलना करते हुए की जा रही थी. ऐसा आंखों में पट्टी बंधा और आत्मा में न जाने कौन से विकार से ग्रसित विचार छापा जा रहा था. 2011 की क्या चुनौतियां, कस्में वादें, अश्ललीलताएं और बदमाशियां हो सकती हैं उन सबका एक मुआयना था मीडिया में, खेती उद्योग रोज़गार और चौतरफ़ा संपन्नता के विश्लेषण थे, क्लिशे और कोलाहल वाली भाषा थी, शोभा डे का एक लेख था जिसमें फुटपाथ पर भीख मांगती बच्ची के हवाले से लिखा गया था, जगमग जीवन की उथली सी रपटाऊ और निकम्मी उम्मीदें हर कहीं से निकाली जा रहीं थीं जब बिनायक सेन को जेल से छुड़ाने के लिए दुनिया भर से अपीलें आ रही थीं. बैठकें और प्रदर्शन हो रहे थे.

बिष्णु नाम के एक मज़दूर ने दम तोड़ दिया था 2008 में जब बिनायक सेन को जेल हो गई थी. उन्हें नहीं छोड़ा गया था और बिष्णु उनका मरीज़ था. उसे इलाज़ नहीं मिला. बीमारी अवसाद और थकान में उसने दम तोड़ दिया था. बिनायक सेन की मां की चिंता है कि अगर उनका डॉक्टर बेटा जल्दी रिहा न हुआ तो न जाने कितने मरीज़ भुगतेंगें.

देश के उस उपेक्षित शोषित हिस्से के वे ग़रीब उस “देशद्रोही” अपने डॉक्टर बिनायक सेन का इंतज़ार कर रहे हैं. इस इंतज़ार के साथ साल 2011 में जाना भी जैसे एक नई विकल कर देने वाली उदासी भरे इंतज़ार में जाना था.

फ़िलहाल आएं उस कथित हैपी न्यू इयर विश के किनारे इंतज़ार करें. अभ्यस्त होते जाने, भूल जाने और मुख्यधारा की दमक में लौट जाने की लुभावनी पेशकश के प्रतिरोध का ये भी एक तरीक़ा हो सकता है.

3 comments:

Ashok Kumar pandey said...

बिनायक सेन के विरुद्ध जो आरोप है उस में देशद्रोह शब्द मीडिया और कथित राष्ट्रवादी लेखकों ने उपयोग करना आरंभ किया है। जबकि Sedition का अर्थ राजद्रोह होता है

iqbal abhimanyu said...

इंतज़ार में साथ हूँ.

Dorothy said...

सोचने को मजबूर करती आलेख के लिए आभार.

अनगिन आशीषों के आलोकवृ्त में
तय हो सफ़र इस नए बरस का
प्रभु के अनुग्रह के परिमल से
सुवासित हो हर पल जीवन का
मंगलमय कल्याणकारी नव वर्ष
करे आशीष वृ्ष्टि सुख समृद्धि
शांति उल्लास की
आप पर और आपके प्रियजनो पर.

आप को सपरिवार नव वर्ष २०११ की ढेरों शुभकामनाएं.
सादर,
डोरोथी.