Monday, January 24, 2011

एक ठेठ भारतीय रोमान की शास्त्रीय आवाज़ का अवसान

नहीं रहे पंडित भीमसेन जोशी

शिवप्रसाद जोशी


हिंदुस्तानी संगीत की ख़्याल गायकी में किराना घराना एक उफनती हुई नदी की तरह मौजूद था. और उसमें अपने संगीत की नाव को खे रहे थे भीमसेन जोशी. वह अब नहीं रहे. किराना घराने की आखिरी लौ जैसा हिंदी के वरिष्ठ कवि असद ज़ैदी ने कहा है, वो भी अब बुझ चुकी. संगीत और शोर के इस विराट अंधकार में भीमसेन जोशी को याद करना जैसे एक पहाड़ पर लालटेन लेकर चलने सरीखी उदासी और उम्मीद और अवसाद का मिला जुला अनुभव है.

कलाकार के रूप में वो कौन सा सबसे बड़ा मूल्य है जिसकी हिफ़ाज़त करनी चाहिए. उनका कहना था-ईमानदारी. यही एक चीज़ है. पंडित भीमसेन जोशी अपनी इसी गहन ईमानदारी भरी सुर साधना के साथ लगभग एक सदी तक संसार में रहे और अब वह अपनी देह से विरत हो गए हैं. भीमसेन जोशी अपनी आवाज़ में अमर हैं लिहाज़ा उनके लिए श्रद्धांजलि जैसी चीज़ें भी कमतर और ग़ैर ज़रूरी सी जान पड़ती है.

हिंदुस्तानी ख्याल गायकी के किराना घराने के स्तंभ भीमसेन जोशी निर्विवाद रूप से सबसे बड़े और शीर्षस्थ गायक थे. बीसवीं सदी के महान भारतीय शास्त्रीय गायकों की अगर कोई त्रयी बनती हो तो उसमें एक नाम हमेशा उनका है.

अपने समकालीनों में वह किसे महान मानते थे, किससे प्रभावित थे तो भीमसेन जोशी बेहिचक उस्ताद अमीर ख़ान साहब का नाम लेते थे. ज़ाहिर है अपने गुरू सवाई गंधर्व को वो सर्वोपरि मानते थे. अपनी अक्का और किराना घराने की एक और सशक्त आवाज़ गंगूबाई हंगल से भी वो प्रेरित थे और केसरबाई केरकर से भी.

भीमसेन जोशी को जब भारत रत्न सम्मान मिला तो उन्होंने विनम्रता से इतना ही कहा कि समस्त भारतीय संगीत की ओर से वो इस सम्मान को लेते है. यह संगीत का सम्मान है. उन्हें अपने नाम के आगे पंडित का संबोधन कहे जाने से भी विरक्ति थी.

फ़रवरी 1922 को कर्नाटक के गडग में जन्में भीमसेन जोशी 11 साल के थे जब कानों में उस्ताद अब्दुल क़रीम ख़ान की ठुमरी पड़ी. पिया बिन नहीं चैन आवत...बस यही गाना है और ऐसा ही गाना है. भीमसेन विचलित हो गए और घर से भाग खड़े होने को तत्पर.

जगह जगह भटके. बंबई पहुंच गए. वहां से न जाने कहां कहां.पंजाब, रामपुर, कलकत्ता. गुरू नहीं मिला. पिता ने बेटे को ढूंढ निकाला ग्वालियर में और ले गए धारवाड़ रामभाऊ कुंडगोलकर यानी सवाई गंधर्व के पास. कि इसे शिष्य बनाइये. सवाई गंधर्व अब्दुल क़रीम ख़ान के शिष्य थे.

बस भीमसेन को दिशा मिल गई, एक महान गुरू का सान्निध्य. 20 20 घंटे रियाज़. एक धुन एक लगन असंभव को संभव बनाने की. और फिर एक आवाज़ टूटने लगी और एक आवाज़ बनने लगी. किराना घराने की गायकी में नया सितारा प्रकट हो गया.

मसेन जोशी के पास एक सधी साफ़ खनक भरी आवाज़ थी. उस आवाज़ को उसकी चट्टानी फांकों में देखा जा सकता था. किराने घराने की विशिष्टता ने उसमें और रंग भर दिए. स्वर लगाव, बंदिश का एक शुद्ध, अनुशासित उठान, लयकारी की विभिन्न छटाएं और वे बेमिसाल तानें. वे मुरकियां.

किराना घराने की शुद्धता के प्रति आसक्ति को भीमसेन ने कभी नहीं छोड़ा अपने तमाम प्रयोगों के बावजूद. कथक के बिरजू महाराज का कहना है कि भीमसेन एक सांस में एक पूरी तान को अभिव्यक्त कर सकते थे. मंद्र, मध्य और तार सप्तक सभी ऊंचाइयों तक उनकी आवाज़ जा सकती थी. भीमसेन जोशी को गाते हुए सुनना और देखना एक विरल और बड़ा अनुभव इसीलिए बन जाता है वे लय के भीतर छिपी कविता को जैसे रेशा रेशा बाहर लाते हैं. वो उसे एक ऐसी मीठी संरचना में गूंथ देते हैं कि आप बस एक बेकली में इंतज़ार करते हैं कि कब वो उसे छोड़ेगें, कब वो पलटे पर जाएंगें, कब वो उसे अपनी तिलस्मी मुरकी में छिपा लेगें और कब सहसा एक तड़प भरी तान से रोमांचित कर देंगे.

भीमसेन जोशी की गाई बंदिशों में एक है बोले न बोल वो हमसे पिया. राग भैरवी में. उसकी छवियां इतनी निराली और इतनी बेचैन कर देने वाली हैं कि आप सुध बुध खोकर ही उसे सुन सकते हैं. उनका गाया राग मालकौंस पग लगन दे अद्भुत है. पुरिया धनश्री के तो वो महाराज हैं हीं. उनका गाया शिव की स्तुति पर आधारित राग शंकरा बेजोड़ है. और हिंदुस्तानी ख्याल गायकी का कैसा निराला और अवर्णनीय सेक्यूलरिज़्म है कि राग शंकरा में युवा राशिद ख़ान के साथ उनकी एक क्लासिक जुगलबंदी मील का पत्थर मानी जाती है. भीमसेन जोशी ने अपने समकालीनों के साथ काफ़ी जुगलबंदियां की. ऐसी ही एक प्रसिद्ध जुगलबंदी उनकी कर्नाटक संगीत के पुरोधा एम बालमुरलीकृष्ण के साथ है. इस रिकॉर्डिंग को देखना जैसे दो महा नक्षत्रों का विलय देखने सरीख़ा है. भीमसेन इसमें किसी बच्चे जैसी झूम के साथ गाते हैं और एक उद्दाम सरलता में.

बालमुरली के आलाप पर अपना आलाप पिरोते हुए, उनकी तानों और उनके तरानों पर जैसे मुग्ध भाव से झूमते और चहकते हुए और एक रहस्य भरे सांगीतिक वार्तालाप को संभव करते हुए दोनों साधक.

गायन में तानों की लपेट और विलय और बंदिशों के स्पर्शों से सजी ऐसी बातचीत एक बड़ा अनुभव बनाती है. भीमसेन जोशी इसी अनुभव का सृजन करते रहे. टच एंड गो का ये मुहावरा जो यूं टीवी और रेडियो जैसे माध्यमों में काम करते हुए बरता हुआ जाता है शायद संगीत में सबसे पहले और सबसे विश्वसनीय ढंग से मौजूद है. भीमसेन जोशी जैसे गायक इसे समझाते हुए गाते हैं.

भीमसेन जोशी अपने ड्राइविंग के शौक के लिए भी जाने जाते थे. कार चलाने का उनका बीहड़ शौक था और जवानी के दिनों में वो रफ़्तार के कायल थे. भीमसेन जोशी को इंटरव्यू देना पसंद नहीं था. उनके बहुत कम इंटरव्यू हैं. कला और कलाकार के बारे में वो क्या सोचते थे इसकी एक बानगी देखिए.

- नकल करना आसान है लेकिन नकल को असल करके अपनी गायकी में ढालना मुश्किल है
- मेरा गायन मेरे व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति है. मै अपने शार्गिदो से कहता हूं मेरे जैसा नहीं अपने जैसा गाओ. अपने गले का धर्म निभाओ.
- आज कलाकार को सब कुछ मालूम होना चाहिए. कलाकार आटे दाल की कीमत, परिवार के प्रेम, देश की हालत से सबसे जुड़ा हुआ है.
- कला तो यात्रा है और यही अनथक यात्रा उसकी मंजिल है सागर की गहराई, आकाश की ऊंचाई किसने नापी है.
अच्छा संगीत जानने के लिए तीन चीज़ें ज़रूरी हैं-अच्छा गुरु, अच्छा रियाज़ और अच्छी वाणी.
- कलाकार एक चोर की तरह होता है वह सब जगह से कुछ ले लेता और अपनी गायकी में समा लेता है.
- संगीत का धर्म संगीत होता है इसमें जात पात नहीं होती

भीमसेन जोशी के न रहने पर इन सब चीज़ों का याद आना लाज़िमी है. किराना घराना सूना हो गया है और ख्याल गायकी का आंगन भी. लेकिन हमारे समय और आने वाले वक़्तों के लिए यह एक बहुत बड़ी और शायद गिनती की दुर्लभ नेमतों में से एक है कि भीमसेन जोशी की आवाज़ यहीं हैं. एक ठेठ भारतीय रोमान की शास्त्रीय आवाज़.

7 comments:

कविता रावत said...

आपने सही कहा .......पंडित भीमसेन जोशी के निधन से निसंदेह किराना घराना सूना हो गया है और ख्याल गायकी का आंगन भी. लेकिन हमारे समय और आने वाले वक़्तों के लिए यह एक बहुत बड़ी और शायद गिनती की दुर्लभ नेमतों में से एक है कि भीमसेन जोशी की आवाज़ यहीं हैं. एक ठेठ भारतीय रोमान की शास्त्रीय आवाज़...........
..... ....इस दुखप्रद घडी में उन्हें मेरी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि और ईश्वर उनके परिवार को यह गहरी वेदना सहने की शक्ति प्रदान करें यही मेरी प्रार्थना है ..आपका आभार

पारुल "पुखराज" said...

वे अपनी अगली यात्रा पर निकल गये …हम सुनते रहेंगे,गुनते रहेंगे सदा उन्हे

मुनीश ( munish ) said...

Liberal arts often make men effeminate , but he was a man who remained a man even while singing.A stalwart whose classical rendering appealed even a common man. Who can forget his immortal ".Mile sur mera tumhara...." .

प्रवीण पाण्डेय said...

संगीत के साधक का महाप्रयाण हुआ।

वंदना शुक्ला said...

desh ke saath sur milane ka avhaan karti ek divy jyoti kahi antarleen ho gai ...vinamr shraddhanjali

Ek ziddi dhun said...

ये दो दिनों से हो रहा था कि अगरतला जैसे छोटे कस्बानुमा शहर में एक दूकान पर भीमसेन जोशी जी की सीडी बड़े ललचाये मन से देखकर लौट जाता था. कुछ इस शर्म से कि शास्त्रीय संगीत का क ख ग भी मालूम नहीं. पर ये बात अलग कि उनकी आवाज़ का जादू हमेशा नशा सा, उल्लास सा और दर्द सा पैदा करता था और वे दो दोनों से भीतर तैर ही रहे थे. सुबह उनके जाने की खबर सुनी तो असद ज़ैदी, मंगलेश डबराल दोनों प्रिय कवि याद आये, अपने संगीत प्रेम के चलते. ...और कबाड़खाना बेतरह याद आया कि जाने अशोक भाई कहाँ हों, नेट पर हों भी. ये टुकड़ा वाकई शानदार है, शानदार गद्य और बेहद आत्मीय शैली. उस्ताद की सुच्ची सी छवि झलक रही है.
....
एक बात अशोक भाई के लिए व्यक्तिगत और सार्वजानिक भी : पिता के जाने पर अपने पास ऐसा कोई ढाढ़स नहीं था जो आपको बंधा पाता. अलबत्ता अपना यह स्वार्थ बयां कर दे रहा हूँ कि कबाडखाना के कबाड़खाना बने रहने के लिए आपका दोबारा सक्रिय होना जरूरी है.

नवनीत पाण्डे said...

महान सुर साधक को हार्दिक श्रद्दा सुमन