Wednesday, March 23, 2011

मेरे साथ मयाड़ घाटी चलेंगे ? -- 12

अखरोट, कुकुम और ठ्रुङ :

लगभग पौन घण्टा चलने के बाद घाटी ““V” आकार में खुलने लगी है. अब सर पर आकाश भी थोड़ा बड़ा लग रहा है. चौहान जी की आँखें भी उसी अनुपात में चौड़ी होती जा रही हैं.एक छोटी सी समतल जगह पर हमने विश्राम किया है. सड़क के नीचे अखरोट का एक पेड़् और कुछ अन्य प्रजाति के झाड़ उगे हुए हैं. पूछने पर उन्हो ने बताया कि यह ठ्रुङ हैं. ठ्रुङ एक महत्वपूर्ण भैषजीय वनस्पति है. इस की लकड़ी बहुत मज़बूत होती है. हल का पत्तर (आधार भाग) इसी लकड़ी का बनता है. मुझे याद आता है, मेरे नाना जी इस की छाल के छोटे छोटे बण्डल मँगाते थे. इन्हे उबाल कर वे जोड़ों के दर्द के लिए काढ़ू तय्यार करते थे. हमारे उस सहयात्री मयाड़ वासी को भी जड़ी बूटियों की खासी जानकारी है. आस पास जो भी वनस्पति नज़र आती है उन के नाम और भैषजीय गुण उसे मालूम है . स्मृतियो और सूचनाओं की इस अलग ही क़िस्म के खज़ाने पर फिदा हो रहा हूँ मैं . ये अशिक्षित लोग हैं . और ये बेशक़ीमती जानकारियाँ इन की स्मृतियों मे पीढ़ी दर पीढ़ी दर्ज हुई हैं. क्या आधुनिक शिक्षा स्मृतियों की इस आदिम धारा को बाधित नहीं कर देगी ? थोड़ा मायूस और आशंकित मन से उस छोटी लड़की की ओर देखता हूँ जिस की आँखों मे शिक्षित होने का अभिमान है और सभ्य संसार के सपने तैर रहे हैं. उस ने मुझे सड़क के ऊपर खाली जगह दिखाई है जहाँ पर बरफ नही है और सुन्दर पीले फूल खिल रहे हैं. उस ने बताया कि ये कुकुम के फूल हैं. लाहुल के लोक गीतों मे इस फूल का ज़िक़्र बाज़दफा आता है. इसी फूल के नाम पर तो उदय पुर के निकट एक स्थान का नाम कुकुम सेरि पड़ा है, जहाँ जल्द ही सरकारी कॉलेज खुलने वाला है. लाहुल का पहला कॉलेज. पास जा कर उन फूलों की महक सूँघने का प्रयास करता हूँ. मेरा अनुमान था कि इस का फ्लेवर केसर सा होगा ; जो कि गलत निकला.

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

हिमालय में ऐसी कितनी जड़ी बूटियाँ छिपी हुयी हैं।