Friday, May 20, 2011

मैं उड़ना चाहता हूं तुम्हारे साथ

सुन्दर चन्द ठाक्र बहुत दिनों बाद अपनी नई कविताओं के साथ नमूदार हुए हैं. उन्होंने मुझे आज ही मेल से अपनी कुछ ताज़ा अप्रकाशित रचनाएं भेजी हैं. उन में से सबसे पहले पढ़िये छोटी-छोटी पांच प्रेम कविताओं की यह सीरीज़. बाकी कविताएं भी जल्द ही.-


प्यारी

१.
धीरे से उंगलियां छुड़ाकर
अब तुम हंसकर कहोगी कि क्या हुआ
कल फिर मिलेंगे न

कल?
ख़ुशियों का कल कहां होता है

कल क्या चांद इतना ही वहशी होगा
हवा ऐसी पुरज़ोर
और तुम्हारी आंखों में उफनता ऐसा ही सैलाब

कल तक तो जासूसी नज़रें हमें खोज ले सकती हैं!

२.
अब सिर्फ़ तुम हो
पहले मां भी थी
जो देख लेती थी मेरी रुंआसी आत्मा
और बिना मांगे दे देती थी प्यार

तुम्हारे बाद
नहीं है
कोई

३.
समंदर से पहले तुम हो
भरी हुई नदियों और हरे पहाड़ों से पहले भी
बर्फ़, बारिश और तारों जड़ी रात
चिड़ियों के जादुई कंठ
पंखुरियां फैलाते फूलों और उम्मीदों से भरी
एक नई सुबह
ख़ुश ख़बर एक
पकी हुई फ़सल से भी पहले तुम हो

जीवन में कुछ न पाने के शोक
और सब कुछ पा लेने की ख़ुशी से भी पहले

मेरी अंतस से लगी देहरी
पहला पायदान
मुझ से पहले
मेरे लिए
तुम्हीं हो.

४.
मेरे शब्दों में मिठास भर आई है
मेरी आंखों में ख़्वाब घुस गए हैं
तितलियां हैं
कि बेधड़क बैठ जाती हैं मुझ पे

मैं एक मासूम-सी हंसी में बदल गया हूं

मैं तपती हुई रेत पर हंसते हुए चलता हूं
खुले ख़ंजरों के बीच बेसाख़्ता गुज़रता हूं

कहीं हो तुम
आसपास या दूर कहीं
मुझे तुम्हारी आवाज़ सुनाई देती है.

५.
कुछ था तुम्हारे भीतर
जिस तक पहुंचना चाहता रहा मैं
सिर्फ़ एक परदा थीं तुम्हारी आंखें
तुम्हारी हंसी एक धोख़ा

वह बिन्दु जहां से रिसता है जीवन
सुराख़ वह छिपा हुआ अंतस में कहीं
तुम्हारी बेबसी का राज़ छिपा था जहां
मुझे पहुंचना था वहां

मैं तुम्हारे सारे पोर खोल देना चाहता हूं
हवा की तरह भर जाना चाहता हूं तुम में
समुद्री हवा की तरह
उड़ा देना चाहता हूं उनमें जमा हुआ दुःख

मैं उड़ना चाहता हूं तुम्हारे साथ
नदी के पानी से प्यास बुझाकर
उड़ जाते हैं जैसे दो पक्षी
हवा में कुलांचें भरते.

(चित्र: समकालीन अमेरिकी कलाकर जेसिका टॉरेन्ट की कृति "बिलवेड")

3 comments:

Unknown said...

अब तुम हंसकर कहोगी कि क्या हुआ
कल फिर मिलेंगे न
लेकिन
ख़ुशियों का कल कहां होता है
कल तक तो जासूसी नज़रें हमें खोज ले सकती हैं!
क्या ख़ूब कही है भाई साहब!

Ashok Kumar pandey said...

बहुत सुन्दर कविताएँ...

Bharti Gaur said...

"वह बिन्दु जहां से रिसता है जीवन
सुराख़ वह छिपा हुआ अंतस में कहीं"

बहुत सुन्दर.