Wednesday, June 8, 2011

जानते क्या हो ?

बाबुषा कोहली कबाड़ खाना के गम्भीर पाठकों मे से एक हैं. आप लोगों ने यहाँ उन की महत्वपूर्ण टिप्पणियँ देखीं हैं. आज उन्हो ने मुझे अपने एक अद्भुत फेसबूक नोट पर टेग किया. वह नोट शेयर किए बिना नहीं रह सकता:

कहते हैं औस्पेंसकी तत्व-ज्ञान के बहुत निकट पहुँच गया था. उसके लिखे में अनहद के शब्द सुनायी पड़ते थे.पर कुछ बाक़ी था अब भी . गुरु की खोज में उसने दुनिया का हर कोना खंगाल डाला . गुरुओं की धरती भारत आ पहुंचा. दुनिया के कोने -कोने की खाक़ छान डाली ..पर गुरु कहीं मिलता ही न था . एक दिन जब वह थका -हारा हुआ मॉस्को के एक कॉफ़ी हाउस में पंहुचा.. तब उसे वो मिला जिसके लिए औस्पेंसकी दर-दर भटक रहा था.

गुर्जियफ़ !

गुर्जियफ़ की आँखें याद आयीं आपको ? कैसे कलेजा भेद देती हैं! मनुष्यता के इतिहास में हुए सबसे शक्तिशाली और सामर्थ्यवान पुरुषों में से एक है गुर्जियफ़ ... शक्तिशाली भुजाओं से नहीं! सामर्थ्यवान संपत्ति से नहीं! लेकिन बेहद शक्तिशाली और सामर्थ्यवान !

तो बस, उन कलेजा भेदने वाली आँखों ने औस्पेंसकी को भेद दिया! आर-पार!

औस्पेंसकी चकित ... सम्मोहित ... बौराया हुआ सा पहुँच गया गुर्जियफ़ के पास! उसकी खोज पूरी हो चुकी थी. वो आँखें उसके बदन में सूराख कर के उस पार निकल गयी थीं.

बहुत ताक़त लगाने पर ये भाव शब्द ले सके - "मैं औस्पेंसकी हूँ."

"ओह औस्पेंसकी. अ न्यू मॉडल ऑफ़ द यूनिवर्स वाला औस्पेंसकी! बहुत खूब औस्पेंसकी. तुमने गज़ब की किताब लिखी है. अद्भुत. बेहतरीन. मैं उस किताब का प्रशंसक हूँ."

गुर्जियफ़ की वाणी ही नहीं ... आँखें भी प्रशंसा से भरी हुयी थीं !

फिर गुर्जियफ़ धीरे से औस्पेंसकी के कान की तरफ बढ़ा और बोला - " वो सब तो ठीक है. पर ये तो बताओ, तुम जानते क्या हो? " औस्पेंसकी के पास इस प्रश्न का उत्तर न था . बात सही थी ... इतना लिख तो डाला था. पर जानता क्या था ? उफ्फ्फ्फ़ ... क्या बता दे...? क्या जानता है? कठिन प्रश्न! गुर्जियफ़ ने पुनः प्रश्न किया. औस्पेंसकी निरुत्तर! गुर्जियफ़ ने एक कागज़ उसकी तरफ बढ़ाया - " शायद , तुम बोलने में कठिनाई महसूस कर रहे हो. एक काम करो.जो भी जानते हो उसे लिख दो.' बड़ी देर तक औस्पेंसकी उस कागज़ को लिए खड़ा रहा. कहते हैं ... मॉस्को में हड्डियां गला देने वाली ठंड के दिन थे. औस्पेंसकी के माथे से पसीना चू रहा था .

9 comments:

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

bahut bada sandesh hai is sab ke oiche.. khud ko jaannaa aur gehra gyaan bhi jaroori hai..

निवेदिता श्रीवास्तव said...

सहमत हूँ .....हममें से अधिकतर सिर्फ़ लिखने के लिये ही लिख देते हैं ,समझने के लिये नहीं !

वर्षा said...

वाह!

kavita verma said...

shabd mere pas bhi nahi hai....adbhut ...

मुनीश ( munish ) said...

:)it is a matter of this or that way . We r treading the different paths to same destination :), i still can't believe u writing this...ho..ha..ha..u too !

मुनीश ( munish ) said...

oh.. gosh i thought Ashok bhai wrote the post, sorry Ajay bhai i never had known u much .

अजेय said...

munish bhai, it was not even me. i just copied it from Babusha kohlis fb note. :)

abcd said...

ignorance is bliss.:-)

abcd said...

on second thought its tough to discriminate between artificial innocence and ignorance !