Wednesday, June 8, 2011

राजा

सादिक राज्य के लोगों ने विद्रोह की आवाज उठाते हुए अपने राजा का महल घेर लिया | और वह अपने एक हाथ में अपना ताज और दूसरे हाथ में अपना राजदंड लेकर महल की सीढ़ियों से नीचे उतरा | उसकी प्रभावी मौजूदगी ने भीड़ को ख़ामोश कर दिया, और वह उनके सामने खड़ा हुआ और कहा, "साथियों, जो अब मेरी प्रजा नहीं रही, मैं अपना ताज और राजदंड आपको सौंपता हूँ | मैं अब आप लोगों में से एक बनकर रहूँगा | मैं भी एक आम आदमी हूँ, लेकिन एक आम आदमी की तरह मैं तुम्हारे साथ मिलकर काम करूँगा ताकि हमारी ये जमीन शायद और अच्छी बन जाए | राजा की कोई जरुरत नहीं है | आओ खेतों और अंगूर के बागों की तरफ चलें और मिलजुलकर काम करें | बस आप लोग मुझे बताएं कि किस खेत या किस बाग़ में मुझे जाना चाहिए | अब आप सब राजा हैं |"

और सारे लोग अचंभित हो गए, और मौन छा गया, क्योंकि वो राजा जिसे वे अपने असंतोष के लिए जिम्मेदार मानते थे अपना ताज और अपना राजदंड उन्हें सौंप रहा है और एक आम आदमी बन गया है |

तब हर एक अपने रास्ते चला गया, राजा किसी के साथ एक खेत की ओर चला गया |

लेकिन सादिक का राज्य बिना राजा के अच्छी तरक्की नहीं कर पाया, और असंतोष के बादल फिर से उनकी जमीन के ऊपर मंडराने लगे | लोग बाजारों में अक्सर ये कहकर अपना दुखड़ा रोया करते कि उनके पास एक राजा है राज्य करने के लिए | और बड़े बूढ़े और जवान सबने एक सुर में कहा , "हम अपना राजा बनायेंगे |"

और वे राजा को ढूँढने लगे और उसे एक खेत में मेहनत करते हुए पाया, और उन्होंने उसे उसकी गद्दी पर बिठाया, उसका ताज और उसका राजदंड उसे सौंप दिया | और उन्होंने कहा, "अब शक्ति और न्याय के साथ इस राज्य को चलाओ |"

और उसने कहा, "मैं वास्तव में पूरी शक्ति के साथ राज्य करूँगा, और स्वर्ग और दुनिया के भगवान् मुझे आशीर्वाद दें ताकि मैं न्याय के साथ राज्य कर सकूँ |"

अब, उसके सामने कुछ आदमी और औरतें आयीं और उन्होंने उससे एक व्यापारी की शिकायत की जिसने उनसे दुर्व्यवहार किया, और जिसके लिए वे महज एक ग़ुलाम थे |

और राजा ने तत्काल उस व्यापारी को अपने सामने बुलाया और कहा, "भगवान् के तराजू में एक आदमी की जिंदगी उतनी ही वजनदार है जितनी कि दूसरे की | और क्योंकि तुम उनकी जिंदगी का वजन नहीं जानते जो लोग तुम्हारे खेतों या तुम्हारे अंगूर के बागों में काम करते हैं, तुम इस राज्य से निकाले जाते हो, और तुम्हे हमेशा हमेशा के लिए ये राज्य छोड़ना होगा |"

अगले ही दिन और लोग राजा के पास आये और उसे पहाड़ों के दूसरी ओर रहने वाली एक जमींदार की निर्दयता के बारे में बताया, और कैसे उसने उन्हें उनके दुर्दिनों में ला पटका | उसी समय जमींदार को दरबार में लाया गया, और राजा ने उसे भी देशनिकाला दे दिया, कहा, "वो लोग जो हमारे खेतों को जोतते हैं और हमारे अंगूर के बागों की रक्षा करते हैं हम जोकि सिर्फ उनका अन्न खाते हैं, और उनके शराबखाने की वाइन पीते हैं से कहीं ज्यादा कुलीन हैं | और क्योंकि तुम यह नहीं जानते हो, तुम्हें यह भूमि छोडनी होगी और इस राज्य से कहीं दूर रहना होगा |"

तब कुछ आदमी और औरतें आयीं जिन्होंने कहा कि बिशप ने उनसे पत्थर उठवाए और उन्होंने बड़े गिरजाघर के लिए पत्थर ढोये, तब भी उसने उन्हें कुछ नहीं दिया, हालांकि वे जानते थे कि बिशप का संदूक सोने चांदी से भरा हुआ है, जिस समय वे खुद भूख से खाली थे |

और तब राजा ने बिशप को पेश होने को कहा, और जब बिशप आया, तो राजा ने उससे कहा, "जो सलीब तुम अपने सीने पे पहनते हो इसका मतलब दूसरों को जिंदगी देना होना चाहिए | लेकिन तुम उनकी जिंदगी ले रहे हो और उन्हें कुछ नहीं दे रहे हो | इसलिए तुम्हें इस राज्य को छोड़ना होगा और कभी वापस नहीं आना |"


इस तरह से हर दिन आदमी और औरतों का झुण्ड राजा के पास अपनी समस्या बताने आता था | और हर दिन कुछ अत्याचारियों को उस भूमि से बेदखल किया जाता |

और सादिक के लोग आश्चर्यचकित हुए, और उन्हें दिल में बेहद ख़ुशी हुई |

और एक दिन बड़े बूढ़े और जवान आये और उन्होंने राजा का महल घेर लिया और उसे पुकारने लगे | और वह नीचे उतरा हाथ में ताज और दूसरे हाथ में अपना राजदंड लेकर |

और वह उनसे बोला, अब, आप लोग मुझसे क्या चाहते हैं ? रुको, मैं तुम्हें वह वापस कर दूँ, जो तुमने मुझे सौंपा था |"

लेकिन वे लोग चिल्लाये, "नहीं, नहीं, आप ही हमारे यथोचित राजा हैं | आपने इस धरती को साँपों से खाली किया, और आपने ही सब भेड़ियों को खत्म किया | और हम यहाँ पर आपका स्वागत करते हैं तथा गीतों के जरिये आपका धन्यवाद करना चाहते हैं | आपका राजदंड हमेशा यश पाए, और आपका ताज़ हमेशा बना रहे |"

तब राजा ने कहा, "नहीं, मैं नहीं, आप लोग खुद ही राजा हैं | जब आप लोगों ने मुझे कमजोर और बुरा शासक समझा, तब आप लोग खुद ही कमजोर थे और बुरा शासन कर रहे थे | और अब क्योंकि तुम ऐसा चाह रहे हो इसलिए राज्य तरक्की कर रहा है | मैं सिर्फ आप लोगों के मन का एक विचार हूँ, और मेरा अस्तित्व आपके कर्म में निहित है | शासक जैसी कोई चीज नहीं होती | केवल शासित ही मौजूद होते हैं अपने आप पर शासन करने के लिए |" 

और राजा अपने ताज और अपने राजदंड के साथ दुबारा महल के अन्दर चला गया | और सभी बड़े बूढ़े और जवान अपने अपने रास्ते चले गए और वे सभी संतुष्ट थे |

और हर एक ने अपने आप को राजा महसूस किया जिसके एक हाथ में उसका ताज़ है और दूसरे हाथ में राजदंड |


[The Awakening by Jeana Marino ]

3 comments:

स्वप्निल तिवारी said...

yah har samay kee katha hai....shukriya neeraj ji...

प्रवीण पाण्डेय said...

सब कुछ छोड़ देने के भाव से ही राज्य किया जाये।

kavita verma said...

KAHANI ka raja....aadarsh kahani...