Friday, July 15, 2011

इन सबने बचाया मेरी आत्मा को

आज आपको आलोक धन्वा की कुछेक कविताएं पढ़ने को मिलेंगी. उम्मीद है आप लोगों को भाएंगी -

किसने बचाया मेरी आत्मा को

किसने बचाया मेरी आत्मा को
दो कौड़ी की मोमबत्तियों की रोशनी ने

दो-चार उबले हुए आलुओं ने बचाया

सूखे पत्तों की आग
और मिट्टी के बर्तनों ने बचाया
पुआल के बिस्तर ने और
पुआल के रंग के चाँद ने
नुक्कड़ नाटक के आवारा जैसे छोकरे
चिथड़े पहने
सच के गौरव जैसा कंठ-स्वर
कड़ा मुक़ाबला करते
मोड़-मोड़ पर
दंगाइयों को खदेड़ते
वीर बाँकें हिन्दुस्तानियों से सीखा रंगमंच
भीगे वस्त्र-सा विकल अभिनय

दादी के लिए रोटी पकाने का चिमटा लेकर
ईदगाह के मेले से लौट रहे नन्हे हामिद ने
और छह दिसम्बर के बाद
फ़रवरी आते-आते
जंगली बेर ने
इन सबने बचाया मेरी आत्मा को

2 comments:

विभूति" said...

अच्छी रचना...

प्रवीण पाण्डेय said...

सच कहा आपने, इन छोटी छोटी चीजों ने अभी भी इन्सानियत पर विश्वास बनाये रखा है।