Sunday, November 27, 2011

मान रक्खो मेरे मौन का

सीरिया के बड़े कवि निज़ार कब्बानी (21 मार्च 1923- 30 अप्रेल 1998)  की कविताये आप पहले भी पढ़ चुके हैं। आज प्रस्तुत हैं उनकी  दो  (और) कवितायें :


निज़ार क़ब्बानी की दो कवितायें 
( अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह )

०१- नि:शब्द

मृत हो गए
शब्दकोशों चिठ्ठियों और आख्यानों में
प्रयुक्त किए जाने वाले सारे शब्द।

मैं अन्वेषण करना चाहता हूँ
तुम्हें प्रेम करने का एक अलग मार्ग
जहाँ नहीं होती
शब्दों की कोई दरकार।

०२- मौन

प्लीज
मान रक्खो मेरे मौन का
यह मौन ही है
मेरा सबसे कारगर औज़ार।

क्या तुमने महसूस किया है
मेरे शब्दों को
जब मैं हो जाता हूँ मौन?

क्या तुमने महसूस किया है
उस कथ्य का सौन्दर्य
जब मैं हो जाता हूँ मौन।

3 comments:

आपका अख्तर खान अकेला said...

bhtrin kbaada hai kbaadi bhaai ko bdhaai . akhtar khan akela kota rajsthan

vandana gupta said...

मौन की मुखरता समझ आ जाये तो क्या बात हो।

Pratibha Katiyar said...

waah!