Monday, November 28, 2011

उन्होंने मुझे हज़ार दफ़ा फांसी से लटकाया

सिद्धेश्वर की शुरू की गई निज़ार क़ब्बानी की कविताओं की सीरीज़ में एक पन्ना और जोड़ता हुआ मैं आपके सामने पेश कर रहा हूं इस बड़े कवि की एक बड़ी कविता -


शहरयार की तरह

दोस्त
और दुश्मन
मुझ पर इल्ज़ाम लगाते हैं कि मैं शहरयार जैसा हूं.
शहरयार जैसा होने का इल्ज़ाम,
इल्ज़ाम औरतें इकठ्ठा करने का
जैसे वे डाकटिकट हों या दियासलाई की ख़ाली डिबियां,
इल्ज़ाम उन्हें टांगने का
अपने कमरे की दीवारों पर.
वे कहते हैं मैं नारसिसस हूं
ईडिपस हूं, सेडिस्ट हूं ...
वे मुझ पर मढ़ते हैं तमाम ज्ञात विकृतियों के आरोप
ताकि साबित कर सकें ख़ुद को पढ़ा लिखा
और मुझे पथभ्रष्ट.

कोई नहीं सुनेगा मेरी गवाही को
मेरी जान!
पक्षपाती हैं न्यायाधीश
गवाहों को घूस दी जा चुकी.
मुझे मेरी गवाही से पहले ही
अपराधी घोषित कर दिया जाता है.
मेरे बचपन को कोई नहीं समझता
कोई नहीं मेरे प्यार!
क्योंकि मैं एक ऐसे शहर से आया हूं
जिसके पास बच्चों के लिए कोई मोहब्बत नहीं,
मासूमियत को नहीं समझता वो शहर
उसने कभी नहीं ख़रीदा एक ग़ुलाब
या शायरी की कोई किताब,
कड़ियल हाथों वाला वो शहर
रूखी भावनाओं और दिलों वाला
निगले गए कांच और कीलों से चूर-चूर.
मैं बर्फ़ की दीवारों वाले शहर से आया हूं
जिसके बच्चे पाले की वजह से मर गए.

मैं नहीं मांगता कोई माफ़ियां, न किसी वकील
को किराए पर लेने की मेरी मंशा है
या अपना सिर रस्सी से बचाने की.
उन्होंने मुझे हज़ार दफ़ा फांसी से लटकाया
जब तक कि मेरी गरदन को उसकी आदत न पड़ गई
और मेरे शरीर को एम्बुलैन्स की.

मैं कोई माफ़ियां नहीं मांगता, मुझे ज़रा भी उम्मीद नहीं
किसी भी इन्सान से
बेक़ुसूर ठहराए जाने की,
लेकिन एक सार्वजनिक मुकद्दमे में
मैं सिर्फ़ तुम्हें बतलाऊंगा
मुझ पर इल्ज़ाम लगाने वालों सामने
जिन्होंने मुझ पर इस वजह से मुकद्दमा चलाया कि मेरे पास एक से ज़्यादा औरतें थीं
कि मेरे पास भंडार थे ख़ुशबुओं, अंगूठियों, कंघियों
और उन तमाम चीज़ों के जिन पर युद्धकाल में राशन लगाया जाता है -
मैं सिर्फ़ तुमसे मोहब्बत करता हूं
मैं चिपटा रहता हूं तुम से
जैसे अनार से उसका छिलका,
जैसे आंख से आंसू
जैसे ज़ख़्म से शमशीर.

मैं कहना चाहता हूं
चाहे फ़क़त सिर्फ़ इस दफ़ा
कि मैंने कभी शहरयार का रास्ता नहीं अपनाया
हत्यारा नहीं मैं
मैंने कभी नहीं गलाईं तेज़ाब में औरतें,
मगर मैं एक कवि हूं,
जो लिखता है ऊंची आवाज़ के साथ
जो मोहब्बत करता है ऊंची आवाज़ के साथ

मैं हरी आंखों वाला एक बच्चा हूं
बग़ैर बच्चों वाले शहर के दरवाज़े पर फांसी से लटकाया हुआ.

शहरयार - मशहूर क्लैसिक "अरेबियन नाइट्स" का एक काल्पनिक फ़ारसी सम्राट. कहानी में शहरयार को उसकी पत्नी दग़ा देती है जिसकी वजह से वह पगला जाता है और मानने लगता कि आख़िरकार हरेक औरत उसे दग़ा दी देगी. सो अगले तीन सालों तक हर रात वह एक नया ब्याह रचाता है जिसे अगली सुबह फांसी पर लटका दिया जाता है जब तक कि वह अपने वज़ीर की ख़ूबसूरत बेटी शहरज़ादी से शादी नहीं कर लेता. अगली १००१ रातों तक शहरज़ादी उसे हर रात भोर होने तक एक नई कहानी सुनाती है, हर दफ़ा कहानी बेहद दिलचस्प मरहले पर अधूरी छूट जाया करती ताकि वह अगली उस कहानी को आगे बढ़ा पाने की मोहलत पा सके.