Friday, December 30, 2011

एक कहानी जो मैं कहना नहीं चाहता

जापान में जन्मे अकिरा कुरोसावा (१९१०-१९९८  दुनिया के  बेहतरीन फिल्मकारों में से एक हैं | सेवेन समुराई, योजिम्बो, कगेमुषा, ड्रीम्स, राशोमोन, रैन उनकी कुछ ऐसी फिल्मों में से हैं जो आज भी देखने वालों पर न खत्म होने वाला प्रभाव छोड़ जाते हैं | हेइगो उनके बड़े भाई और मार्गदर्शक थे | १९३३ में हेइगो ने ख़ुदकुशी कर ली | पचास साल बाद अपनी आत्मकथा 'समथिंग लाइक एन आटोबायोग्राफी' में अकिरा ने इस घटना का जिक्र किया है |


Photo: Akira's persona and Van Gogh in Akira Kurosawa's Dreams

ऐसी कहानी सुनाने के बाद जो मुझे बुरा महसूस कराती हो, मुझे जारी रहना चाहिए और उस बारे में लिखना चाहिए जो मैं दुबारा नहीं देखना चाहूँगा | यह मेरे भाई की मृत्यु से सम्बंधित है | इसके बारे में लिखना मेरे लिए बेहद पीड़ादायी है , लेकिन अगर मैं इस बारे में चर्चा नहीं करूँगा, तो मैं आगे जारी नहीं  रख पाऊंगा | जिंदगी के स्याह पहलुओं की एक झलक देखने के बाद, मुझे अचानक अपने माता-पिता के घर जाने की जरूरत महसूस होने लगी | अब यह साफ़ हो गया था कि आगे से अब सारी विदेशी फ़िल्में बोलने वाली फिल्में होंगी , और उन्हें दिखाने वाले सिनेमाघरों ने एक सार्वभौमिक सा नियम बनाया कि उन्हें अब दृश्य का वर्णन करने वालों की कोई जरुरत नहीं रही | बड़ी संख्या में वर्णनकर्ता निकाले जाने लगे, और, इसे सुनकर, वे लोग हड़ताल पर चले गए | मेरा भाई, जो हड़तालियों का अगुआ बना था, काफी बुरे दौर से गुजर रहा था | मेरे लिए यह सही नहीं था कि लगातार अपने आप को उस पर थोपता रहूँ | मैं घर चला गया | मेरे माता-पिता , जो मेरी पिछली कुछ सालों की मेरी जिंदगी के बारे में कुछ नहीं जानते थे , उन्होंने मेरा स्वागत किया ऐसा जैसे मैं रेखाचित्रों के अध्ययन के लिए दूर गया था | मेरे पिता जैसे सब कुछ जानना चाहते थे कि मैं किस तरह की चित्रकला का अध्ययन कर रहा था , तो मेरे पास कोई रास्ता नहीं बचा था इसके अलावा कि मैं सच के बारे में चुप ही रहूँ और जहाँ तक हो सके झूठ बोलूं | मेरे पिता की उम्मीदें मुझे एक कलाकार के रूप में देखना, यह देखकर मैंने दुबारा चित्रकार बनने की सोची | मैं दुबारा से रेखाचित्र बनाने लगा, मैं तैलचित्र बनाना चाहता था | लेकिन घर का खर्चा मेरी बड़ी बहन उठा रही थी, जिसने मोरिमुरा गकुएँ के एक अध्यापक से विवाह किया था | मैं उनसे रंग और कैनवस नहीं मांग सकता था | इसलिए मैंने रेखाचित्र बनाये |

इन सबके बीच, एक दिन हमने मेरे भाई के आत्महत्या की कोशिश के बारे में सुना | मुझे यकीन था कि इसकी वजह उसकी हडताली वर्णनकर्ताओं के मुखिया बनने की दर्दनाक स्थिति थी, जो असफल रही थी | मेरे भाई ने यह सोचकर इस्तीफा दे दिया था कि जब फिल्म तकनीक इतनी विकसित हो चुकी है कि अब फिल्मों में आवाज भी शामिल की जाने लगी है, तो वर्णनकर्ताओं की जरूरत नहीं रह जायेगी | जबकि वह जानता था कि वह हारी हुई लड़ाई लड़ रहा है, उसके लिए उनका अगुआ बनना बयान करने की हद से भी तकलीफदेह रहा होगा | मेरे भाई की अपनी जिंदगी की पीड़ा को एक बार में खत्म कर देने की कोशिश ने पूरे घर पर फिर से दुःख का ग्रहण ला दिया | मैं किसी भी तरह से कोई खुशी का बहाना ढूँढना चाहता था जिससे एकबारगी सबका ध्यान कहीं और जाए | तो मुझे एक विचार आया कि अपने भाई की शादी उस औरत से करवा दूँ जिसके साथ वह रह रहा था | मैं लगभग एक साल तक उसके जासूसी सा करता रहा, और उसके चरित्र में कुछ संदेहास्पद मुझे नहीं मिला , बल्कि मैं उससे ऐसे व्यवहार करने लगा जैसे वह वास्तव में मेरी भाभी ही हो | मुझे लगने लगा जैसे उनके रिश्ते को एक औपचारिक जामा पहनाने का काम मेरा नैसर्गिक भूमिका हो जो मुझे अदा करनी ही है | माँ, पिता तथा बड़ी बहन को इसमें कोई ऐतराज नहीं था | लेकिन अजीब बात यह थी कि मुझे अपने भाई से कोई सीधा सीधा जवाब नहीं मिला | मैंने उसके मौन को यह सोचकर स्वीकार कर लिया कि वह आजकल बेरोजगार है | तब एक दिन माँ ने मुझसे पूछा, "क्या हेइगो पूरी तरह से ठीक है |" "आपका क्या मतलब है ?" मैंने पूछा | तब उन्होंने अपना डर  बताया "क्या हेइगो हमेशा नहीं कहता था कि वह तीस साल पूरे करने से पहले ही मर जाएगा ?" जो भी उन्होंने कहा वह सच था | भाई हमेशा कहता था | वह दृढतापूर्वक कहता था कि जब लोग तीस साल पार कर लेते हैं , वे जो भी करते है वह बदसूरत और मतलबी होता है, इसलिए उसका वो सब करने का कोई इरादा नहीं है | वह रशियन साहित्य का बड़ा उपासक था, और मिखाइल आर्त्सीबशेव के दी लास्ट लाइन को दुनिया की सबसे बेहतरीन किताब का दर्जा देता था , और उसकी एक प्रति हमेशा अपने हाथो में रखता था | लेकिन नायक नौमोव के अजीब मृत्यु के धर्म के प्रति मेरे भाई का लगाव  मुझे हमेशा भावनाओं के अतिरेकता से ज्यादा कुछ नहीं लगता था | और यह बेशक उसकी अपनी मौत की इच्छा नहीं है | इसलिए जब मेरी माँ ने अपनी चिंता व्यक्त की तो मैंने इसे हंसकर उड़ा दिया, यह कहकर, "जो लोग मरने के बारे में बात करते है , नहीं मरते |" मैंने अपने भाई के शब्दों को हल्का कर दिया , लेकिन कुछ ही महीने बाद , मैंने माँ की आशंका को अपनी आखों के सामने घटते हुए देखा, मेरा भाई मर चुका था | और जैसा उसने वादा किया था , वह तीस साल पूरे होने से पहले ही मर गया था | सताईस साल की उम्र में उसने ख़ुदकुशी कर ली | ख़ुदकुशी से तीन दिन पहले उसने मुझे अपने साथ रात्रिभोज करने के लिए बुलाया था | लेकिन, काफी अजीब, मैं कितनी भी कोशिश करूँ, मुझे याद नहीं कहाँ | शायद उसकी मौत ने मुझपर गहरा सदमा छोड़ा था , हालाँकि मैं हमारे आखिरी बातचीत के एक एक वाक्य को पूरी स्पष्टता से याद करता हूँ , मुझे बिलकुल याद नहीं आता कि उसके पहले और उसके बाद क्या हुआ | हमने शिन ओकुबो स्टेशन पर एक दुसरे से विदा ली | हम एक टेक्सी में थे | जैसे मेरा भाई उतरा और ट्रेन स्टेशन की सीढियां चढ़ने लगा , उसने मुझसे कहा कि मैं घर तक के लिए गाडी ले लूँ | लेकिन जैसे ही गाडी दुबारा शुरू हुई, वह सीढ़ियों से वापस आया और उसने ड्राईवर को रुकने का इशारा किया | मैं गाडी से उतरा , उसकी तरफ बढ़ा  और , कहा , "क्या बात है ?" उसने  एक पल के लिए बहुत मुश्किल से मुझे देखा और तब कहा , "कुछ नहीं, तुम अब जाओ |" वह मुड़ा और सीढ़ियों से फिर ऊपर चढ़ने लगा | अगली बार जब मैंने उसे देखा तो वह खून सनी चादर से ढका हुआ था | इजू प्रायद्वीप के एक गर्म पानी के झरने के पास एक सराय के तनहा कमरे में उसने अपनी जान ले ली | कमरे के दरवाजे पर खड़ा मैंने अपने आप को हिलने में असमर्थ पाया | एक रिश्तेदार, जो शव की सुपुर्दगी के लिए मेरे और पिता के साथ आया था , ने मुझे गुस्से से घूरा और पूछा , "अकिरा, तुम  वहाँ  क्या कर रहे हो ?" मैं क्या कर रहा था ? मैं अपने मृत भाई को देख रहा था | मैं अपने मृत भाई के शव को देख रहा था , जिसके रगों में भी वही खून था जो मेरी रगों में है , और जिसने उसे अपने शरीर से बाहर बह जाने दिया था , और जिसे मैं सबसे ज्यादा मान देता था , और जिसकी जगह मेरी दुनिया में कोई नहीं ले सकता था | वह मर चुका था | मैं क्या कर रहा था ? लानत है मेरे ऊपर !
"अकिरा, जरा मेरी मदद करो ," मेरे पिता ने बहुत कोमलता से कहा | और तब, काफी मशक्कत के साथ, वह मेरे भाई के शव को एक चादर में लपेटने लगे | मेरे पिता के सांस फूलने और तनाव के दृश्य ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया , और किसी तरह से मैं कमरे में प्रवेश करने का हौसला जुटा सका | जब हमने मेरे भाई के शव को कार में रखा जिसे हम टोक्यो से हमारे साथ लाये थे , शव ने एक गहरी कराह ली | उसके पैर जो उसकी छाती से सट गए थे , जिसकी वजह से हवा उसके मुंह के रास्ते बाहर निकल आई थी | कार के ड्राईवर की कंपकंपी छूट गयी थी, लेकिन किसी तरह से वह शव को शमशान ले जा सका और उसे राख में बदल सका | वह पागलों की तरह वापस टोक्यो के लिए गाडी चलाता रहा , और बहुत सारे अजीब रास्तों से ले गया | मेरी बहादुर माँ ने मेरे भाई की ख़ुदकुशी के पूरे घटना को पूरे मौन के साथ, बिना एक आंसू बहाए सहन किया | जबकि मैं जानता था कि उसके दिल में मेरे लिए बिलकुल भी द्वेष नहीं है , मैं अपने आप को उसकी मौन यातना का जिम्मेदार मानने लगा | जब वह मेरे पास आई तो मैंने उससे अपने भाई के शब्दों को काफी हलके में लेने के लिए माफ़ी मांगनी चाही | लेकिन उसने इतना ही कहा , "अकिरा, तुम क्या कहना चाहते हो ?"  वह रिश्तेदार जिसने मुझसे पूछा था , "अकिरा, तुम वहाँ क्या कर रहे हो?" जब मैं अपने भाई के शव को देखकर स्तब्ध हो गया था, भी मुझे उतना नहीं डरा सका था, लेकिन मैं अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाया जो कुछ भी मैंने अपनी माँ से कहा था | और इसका अंजाम मेरे भाई के लिए कितना खतरनाक हुआ था | मैं कितना बेवकूफ हूँ !


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