Wednesday, June 27, 2012

सिंध में सत्रह महीने - २


(पिछली कड़ी से आगे)

दो.

सत्राह महीने तक सिंध से मेरा संपर्क रहा. हैदराबाद की सारस्वत ब्राह्मण पाठशाला में प्रधानाध्यापक पद पर कुछ दिन, और कुछ दिन सिंध की राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के मुख्य पत्रा ‘कौमी बोली’ के संपादक रूप में.

1941 की मर्दुमशुमारी के अनुसार सिंध प्रांत की जनसंख्या 45 लाख है, जिसमें 11 लाख हिंदू है. जनता की धार्मिक मनोवृत्ति सूफ़ी और नानकपंथी है. आठवीं सदी के शाहनमाह के अरबी लेख से पता चलता है कि उस समय वहां बौद्ध और ब्राह्मण दोनों ही संस्कृति के लोग रहते थे. सिंध पर अरबी आक्रमण मुहम्मद-बिन-कासिम द्वारा 692 ई. में हुआ. तब से इस भूमि में इस्लामी भावनाओं का प्राधान्य चला आ रहा है. मीरों, कलहारों और नवाबों की सामंतशाही से ऊबकर स्थानीय जनता राजपूताना, गुजरात और पंजाब में जा बसी और सिंधुनद के उपजाऊ इलाकों को आगंतुकों के लिए खाली कर गयी. उन्हें तलवार छोड़कर तराजू का सहारा लेना पड़ा. इसी से सिंध का नागरिक जीवन आज हिंदू-प्रधान हो गया.

गुरु नानक की संतवाणी यहां के हिंदुओं और दूसरे लोगों में काफ़ी लोकप्रिय है. सूफी संतों की परंपरा यहां ऐसी प्रबल रही है कि सभी सिंधी सूफ़ी धारणाओं से ओत-प्रोत हैं. किसी सिंधी हिंदू से आप मिलिये और पूछिये कि तुम क्या मानते हो, वह अवश्य गुरु नानक और शाह अब्दुल लतीफ़ के दो-चार पद सुना देगा. शाह अब्दुल लतीफ़ बहुत बड़े सूफ़ी कवि थे. सिंध में वह इतने लोकप्रिय हैं कि उन्हें वहां का तुलसीदास कहा जाता है. सिंधी मुसलमानों को बहुधा मैंने हिंदू मंदिर, वरुण चैत्य और गुरुद्वारों के सामने सिर झुकाते देखा है. हिंदुओं को पीरों की दरगाहों के समक्ष नतमस्तक पाया है. हिंदू हो या मुसलमान, सिंधी का हृदय प्रेम-मार्गी होता है. अठारहवीं सदी के मस्त फ़कीर सचल सरमस्त का यह दोहा कितना बढ़िया है –

 “आहि रूहु मुंही जो अरब जो ऐं खाकि हिंदूजी अहमद मिल्यों हुते त हिति श्याम मिल्यो अहि” (मेरी आत्मा अरब की है, तो शरीर हिंदू का; वहां अगर मुहम्मद मिले तो यहां श्याम मिले हैं.)

सांप्रदायिक दंगे सिंध में उतना उग्र रूप नहीं धारण करते, जैसा कि अन्य प्रांतों में. पीरों की दरगाहों पर होने वाले मेलों में मैं कई बार शामिल हुआ हूं. एकतारा पर पीरों के गुणगान करने वाले हिंदू भगतों को झूमते देखा है. मुल्तान कभी सिंध के अंतर्गत था. वर्तमान प्रांत-विभाजन के अनुसार मुल्तान कमिश्नरी पंजाब के अंदर है, परंतु औरतों की नाकों में पुखराजवाली नथ देखकर सहसा उनकी तुलना आप सिंधी महिलाओं से कर बैठेंगे. जल-पूजा मुल्तान में भी प्रचलित है. सिंध के महात्मा उडेरो (लाल) वरुण के अवतार माने गये हैं और वरुण असुर सभ्यता का उतना ही पूज्य देवता है, जितना कि इंद्र वैदिक सभ्यता का. असुर सभ्यता के अवशेष सिंध के मोहन-जोदड़ो और पंजाब के हड़प्पा में समान रूप से पाये गये हैं. तत्कालीन सभ्यता का यह चिद्द (जल-पूजन) भी मुल्तान के निकटवर्ती स्थानों तक प्रचलित है. और सिंध में तो जलपूजकों का एक संप्रदाय ही बन गया है, जिसे दरियापंथी कहते हैं.

(जारी)

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