आज के
लिए महाप्राण निराला की एक कविता
जन-जन के
जीवन के सुन्दर
जन-जन के
जीवन के सुन्दर
हे चरणों
पर
भाव-वरण भर
दूँ तन-मन-धन
न्योछावर कर.
दाग़-दग़ा
की
आग लगा दी
तुमने जो
जन-जन की, भड़की;
करूँ आरती
मैं जल-जल कर.
गीत जगा जो
गले लगा लो, हुआ ग़ैर जो, सहज सगा
हो,
करे पार जो
है अति दुस्तर.
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