Friday, April 12, 2013

उत्तर पूर्व की कविताएं - ८


मुझे चाहिए
     - ममांग दाई
(उत्तर पूर्व की कविताओं के क्रम में आज प्रस्तुत है अंग्रेजी में लिखने वाली अरुणाचली कवि ममांग दाई की एक और कविता। अनुवाद सिद्धेश्वर सिंह का है)

मेरे प्रियतम
मुझे चाहिए
प्रात:काल का महावर
मुझे चाहिए
ढलती दोपहर की स्वर्णिम सिकड़ी
मुझे चाहिए
चन्द्रमा की पायल
ताकि मैं नृत्य कर सकूँ
पुन: तुम्हारे संग।

मुझसे साझा करो
अपने हृदयंगम रहस्य
अपनी साँसें दो मुझे
फिर से।
कथायें सुनाओ मुझे मानवीय भूलों की
और बतलाओ
कि क्यों परिवर्तित नहीं होता है प्रतिबिंब।

3 comments:

Tamasha-E-Zindagi said...

बहुत सुन्दर लेखन | पढ़कर आनंद आया | आशा है आप अपने लेखन से ऐसे ही हमे कृतार्थ करते रहेंगे | आभार

कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page

मुनीश ( munish ) said...

देश और काल के एक उपेक्षित भू-भाग की ओर पाठकों का ध्यान खींचने का सराहनीय कार्य कबाड़खाना पर हमेशा होता रहा है । उसी माला में कुछ नए फूल जोड़ने के लिए धन्यवाद । पूर्वोत्तर को जापानी में तोहोकु कहते हैं सो तोहुकु की हूक से जनमानस को जोड़न के लिए तोहु को परनाम ।

VIVEK VK JAIN said...

Kabaadkhana itna khamosh kyu h?