संगीत के आसपास कुछ कविताएं- २
अडाना
-शिवप्रसाद जोशी
पौंछता रहता हूं
तौलिए से अपना पसीना
चिपचिपा नहीं है दुख मेरा
मैं उस पानी से बना हूँगा
जो काँच में रहता है
डगमग नहीं होता
बहुतेरे कष्ट
कि आसान हो गए जैसे कहते हैं
मेरी इस अविचलता के कुएँ में गिरते जाते
हैं
जहाँ से उठता है संगीत
मेरे पास है तानपुरा
उसके नीचे है बच्चे की नींद
झिड़कियाँ पत्नी की
रोज़मर्रा के काम
सड़कें गाड़ियाँ रेल
तानों के रेशे
लिपटे हुए मेरी ऊँगुलियों में
इतना संगीत बिखरा हुआ है वहाँ
लोग गा लेते हैं पर पोएट्री नहीं आती
यही बार बार कहता हूँ सबसे
बिना कविता के क्या गाना
कोशिश करता रहता हूँ इस तरह
कि गाऊँ सुर को कविता में
बस यही चाहिए
सुखी हूँ साहब अपने ढंग का
मैं अमीर.
No comments:
Post a Comment