प्यार
की तरह झरते हुए स्वर : सिड्नी बेशेत
-फ़िलिप लार्किन
किंग ऑलिवर के दौर ही में यानी पहले विश्वयुद्ध के बाद सन बीस के
दशक में जैज़ संगीत में एक नया मोड़ भी आया था. इस मोड़ के महत्व का अनुमान केवल
इसी एक बात से लगाया जा सकता है कि जो संगीत खेत-खलिहानों से शुरू हो कर नाच-घरों
और संगीत-सभाओं तथा रिकॉर्ड कम्पनियों तक पहुँचा था, उसमें पहली बार उस्तादों की आहटें सुनायी पड़ने लगीं. स्कॉट जॉपलिन हों या
जेली रोल मॉर्टन और बडी बोल्डन, या फिर उन्हीं जैसे अन्य
नीग्रो संगीतकार - वे सब-के-सब जैज़ संगीत के पुष्कर थे - मनोरम; मोहक; गहरे, नीले, शफ़्फ़ाफ़ पानी के चश्मे, मगर जैज़ संगीत को परम्परा की
धारा के रूप में बहाने का काम किया किंग ऑलिवर और उनके क्रियोल जैज़ बैण्ड ने. और
जैज़-संगीत को उसके कुछ पहले-पहले महान संगीतकार दिये.
जैज़ के प्रारम्भिक चरण में किंग
ऑलिवर ने जो भूमिका निभायी, उसका मूल्यांकन आसान नहीं है.
किंग ऑलिवर को जैज़ का अविस्मरणीय स्तम्भ कहा जाय तो ग़लत न होगा. उनका संगीत सचमुच
प्यार और मुहब्बत का संगीत था. उसमें ग़म था, दर्द था,
अपने नीग्रो समुदाय के उत्पीड़न की व्यथा थी, लेकिन
साथ ही ख़ुशियाँ और प्यार की गर्मी भी थी. कटुता और नफ़रत का उसमें लेश भी न था.
(किंग ऑलिवर और उनका क्रियोल जैज़ बैण्ड )
किंग ऑलिवर ने अपना बैण्ड शुरू तो न्यू ऑर्लीन्स में किया था, लेकिन सन 1918 में वे अपने साथियों समेत शिकागो चले गये, जहाँ नीग्रो समुदाय अच्छी-ख़ासी
तादाद में बसा हुआ था और जैज़ की बड़ी माँग थी. लगभग दस साल तक किंग ऑलिवर ने
शिकागो में ही अपना डेरा जमाये रखा और संगीत प्रेमियों को अपनी कला से मोहित करते
रहे. जैज़ संगीत को किंग ऑलिवर की जो देन है, वह तो अपनी जगह है ही, इससे भी बड़ी है उनकी वह देन, जिसने जैज़ की पूरी परम्परा को
प्रभावित किया. किंग ऑलिवर का व्यक्तित्व सचमुच उस्ताद का व्यक्तित्व था. वे केवल
अपनी निजी फ़नकारी में ही दिलचस्पी नहीं रखते थे, बल्कि अन्य उभरती हुई प्रतिभाओं
को पहचानने, परखने, तालीम देने और सामने लाने की ज़िम्मेदारी भी निभाते थे. उन्हीं के
बैण्ड में जैज़ के दो अमर संगीतकारों सिडनी बेशेत और लुई आर्मस्ट्रौंग (1900-1979) ने जैज़ की दुनिया में अपना सिक्का
जमाया. लुई आर्मस्ट्रौंग तो आगे चल कर जैज़ के अघोषित राजदूत ही साबित हुए.
मगर लूई आर्मस्ट्रौंग की चर्चा से पहले एक ऐसे जैज़ फ़नकार का ज़िक्र जिसने
बहुत ही ख़ामोशी से इस संगीत को सजाया और नयी धाराओं से समृद्ध किया. यह संगीतकार
थे - सिडनी बेशेत (1897-1959).
***
सिडनी बेशेत |
कुछ और बड़े होने पर सिडनी बेशेत ने लोरेन्ज़ो टियो, लूइस नेल्सन डेलाइल और जौर्ज बैके
जैसे जाने-माने क्लैरिनेट वादकों की शागिर्दी भी की. इसके कुछ ही समय बाद सिडनी
बेशेत न्यू और्लीन्ज़ के अलग-अलग बैण्डों में शामिल हो कर बजाने लगे और अभी वे
सोलह-सत्रह साल के थे कि उन्होंने किंग ऑलिवर के ओलिम्पिया बैण्ड में उनकी संगत भी
की. लेकिन उनके सितारों में दूर-दूर के सफ़र लिखे थे और हालांकि वे न्यू और्लीन्ज़
में पले बढ़े थे, 1914 ही से उन्होंने यात्राएं करनी शुरू कर दी थीं जो उन्हें शिकागो तक
ले गयी थीं. 1919 में वे न्यू यौर्क गये और वहां एक मशहूर जैज़ मण्डली के साथ उन्हें
पहली बार विदेश जाने का मौक़ा मिला.
लन्दन पहुंचते ही उन्हें "रॉयल फिलहारमोनिक हॉल" में
अपनी मण्डली के साथ जौहर दिखाने का अवसर मिला और बेशेत ने अपने संगीत से सभी तरह
के लोगों का मन जीत लिया. लन्दन से लौट कर बेशेत ने अपने संगीत को रिकॉर्ड कराना
शुरू किया और 1923 में पहले-पहले रिकॉर्ड तैयार कराये. इस मामले में वे लूई
आर्मस्ट्रांग से आगे-आगे थे.
(सिडनी बेशेत - टेक्सास मोनर ब्लूज़)
दो साल बाद फ़्रान्स की यात्रा ने बेशेत के सामने यूरोप के दरवाज़े
खोल दिये और अगले कई वर्षों तक उन्होंने रह-रह कर यूरोप के दौरे किये और रूस तक
अपनी फ़नकारी के नमूने पेश किये. तभी जब वे अपने हुनर और शोहरत के शिखर पर थे एक
ऐसी घटना हुई जिसने उन के जीवन पर गहरा असर डाला. पैरिस में बेशेत को लगभग साल भर
जेल काटनी पड़ी जब गोलीबारी की एक घटना में एक राह-चलती औरत घायल हो गयी. कुछ लोगों
का कहना था कि गोलीबारी तब शुरू हुई जब किसी दूसरे संगीतकार/प्रोड्यूसर ने बेशेत
से कहा कि वे ग़लत सुर बजा रहे थे और बेशेत ने उस आदमी को यह कहते हुए
द्वन्द्व-युद्ध की चुनौती दी कि "सिडनी बेशेत कभी ग़लत सुर नहीं बजाता."
दूसरे स्रोतों के अनुसार बेशेत पर एक प्रतिद्वन्द्वी संगीतकार ने घात लगा कर हमला
किया था.
बहरहाल, असली क़िस्सा जो भी हो इतना सच है कि बेशेत के मिज़ाज में चिड़चिड़ापन
और गर्मी कुदरती थी और इसका ख़मियाज़ा उन्हें भुगतना भी पड़ता था. 1932 में अमरीका लौटने के बाद हालांकि बेशेत कई नामी-गिरामी लोगों की
संगत करते रहे पर उन्हें काम मिलने में लगातार दिक़्क़तें होती रहीं. बीच में
उन्होंने दर्ज़ी की एक दुकान भी खोली जिसके पीछे वे अपने यहां आने वाले कई मशहूर
जैज़ वादकों के साथ सैक्सोफ़ोन बजाते रहे जिसे उन्होंने अपनी पहली लन्दन यात्रा के
दौरान खोजा था और क्लैरिनेट की जगह अपना लिया था. लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति 1940 के दशक के अन्त में ही जा कर सुधरी.
(सिडनी बेशेत - डियर ओल्ड साउथलैण्ड)
1950 में उन्हें पैरिस के जैज़
मेले में एकल वादन के लिए न्योता गया. मेले में उनके प्रदर्शन से एक बार फिर उनकी
शोहरत बुलन्दियों पर जा पहुंची. वे अमरीकी जैज़ परिदृश्य से निराश तो थे ही, अब उन्होंने पैरिस जा बसने का
फ़ैसला किया. इसके बाद उन्हें पैसों की दिक़्क़त न रही, भरपूर मौक़े मिले और रिकौर्ड बनाने
वाली कम्पनी "फ़्रेन्च वोग" के साथ उनका अनुबन्ध उनके जीवन के अन्त तक
चलता रहा जिस दौरान उन्हों अनेक लोकप्रिय रिकॉर्ड बनाये जिनमें उनकी
अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति हासिल करने वाली धुन "पेति फ़्लियुर" (नन्हा फूल)
शामिल थी.
(पेति फ़्लियुर)
इस दौरान उन्होंने अपने पुराने साथी लूई आर्मस्ट्रौंग के साथ और
जिप्सी जैज़ गिटार वादक जैंगो राइनहार्ट के साथ कई बार संगत की. बेशेत की
ख़ूबी सिर्फ़ जैज़ के अप्रतिम वादक के तौर पर ही नहीं थी. उनका दायरा पश्चिमी
शास्त्रीय संगीत तक फैला हुआ था और साहित्य और दर्शन तक भी. अब यही देखिये कि
पैरिस में रहते हुए उन्होंने सुप्रसिद्ध रूसी शास्त्रीय संगीतकार की रूमानी शैली
में एक नृत्य नाटिका का संगीत भी तैयार किया - रात एक डायन है.
उनकी हरदिल अज़ीज़ी
का यही सबूत है कि फ़्रान्स में अस्तित्ववादी उन्हें "ले दियू" - यानी
देवता - कहते थे और अंग्रेज़ी के जाने-माने कवि फिलिप लार्किन ने उन पर एक कविता भी
लिखी :
फिलिप लार्किन |
मुझ पर झरते हैं
तुम्हारे स्वर जैसे झरना चाहिए प्यार
एक विशाल हां की तरह
चांद की फांक जैसा
मेरा शहर * ही है
जहां समझी जाती है
तुम्हारी बोली
और स्वागत होता है
उसका
भलाई के स्वाभाविक
स्वर की तरह
बिखेरता हुआ लम्बे
बालों वाला दुख और खरोंच-लगी दया
(* न्यू और्लीन्स को
चांद की फांक सरीखा शहर यानी क्रेसेण्ट सिटी भी कहते थे)
बेशेत का देहान्त 1959 में अपने जन्मदिन पर 14 मई को पैरिस में फेफड़ों के कैन्सर से हुआ. अपनी मृत्यु से कुछ समय
पहले उन्होंने कविता में अपनी आत्मकथा लिखी "ट्रीट इट जेंटल."
सिडनी बेशेत जैज़ के पहले महत्वपूर्ण एकल वादक थे और शायद पहले
जाने-माने सैक्सोफ़ोन वादक. स्पष्ट अदायगी, सुनियोजित संरचनाएं और बढ़त और एक
निजी व्यापक शैली उनके वादन की विशेषता थी. जैज़ की कथित शुद्धता को बरक़रार रखते
हुए, उसमें प्रयोग करते हुए बेशेत ने पश्चिमी शास्त्रीय के अपने ज्ञान
से अपने संगीत को समृद्ध भी किया. विभिन्न साज़ों में उनकी महारत का सबूत यह है कि 1941 में एक प्रयोग के तहत उन्होंने एक रिकौर्डिंग की जिसमें उन्हों
एक-एक करके छै अलग-अलग साज़ - क्लैरिनेट, टेनर सैक्सोफ़ोन, सोप्रानो सैक्सोफ़ोन, पियानो, बेस और ड्रम्स - बजाये, बारी-बारी से अन्य वादकों के साथ
संगत करते हुए. आगे आने वाले अनेक जैज़ फ़नकारों, मसलन औल्टो सैक्सोफ़ोन वादक जौनी हौजस, पर
बेशेत का गहरा प्रभाव पड़ा जो युवावस्था में उनकी शागिर्दी करते रहे.
अकारण नहीं है कि उनके योगदान को याद करते हुए ड्यूक एलिंग्टन ने बाद में
कहा, "मेरे निकट बेशेत जैज़ के प्रतीक थे...जो कुछ
उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में बजाया, वह बिलकुल मौलिक था. मैं ईमानदारी
से सोचता हूं कि वे इस संगीत में सबसे अनोखे आदमी थे."
अन्त में सैक्सोफ़ोन पर सिड्नी बेशेत द्वारा प्रसिद्ध धुन
"सेंट लूइज़ ब्लूज़" की एक अदायगी पेश है :
(सिडनी बेशेत - सेंट लूइज़ ब्लूज़)
(जारी)
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