Thursday, March 24, 2016

होती ना अगर दुनिया की शरम, उन्हें भेज के पतियाँ बुला लेती

इसी बोल से शुरू होने वाला लता मंगेशकर का गाया कोई साठ साल पुराना गीत आज लगातार मुझे याद आ रहा है क्योंकि यह मेरे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण जगह पर हमेशा विराजमान रहने वाले भाई-पिता-दोस्त-कवि वीरेन डंगवाल के सबसे प्रिय गीतों में से एक था. वे इसे कभी कभार गाया भी करते थे – बाकायदा.  


फ़रीद अयाज़ क़व्वाल और उनके साथी पेश करते हैं इसी शानदार रचना को एक अलग अंदाज़ में.  

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