Monday, February 25, 2008

इरफ़ान की चिन्ता हम सब की चिन्ता है

आज इरफ़ान ने अपने ब्लाग पर एक पोस्ट लगाई है:

पिछले कई दिनों से निजी पत्र व्यवहार में स्वप्नदर्शी यह चिंता व्यक्त कर रही हैं कि हम लोग अपने ब्लॉग्स पर जो साहित्य-संगीत आदि प्रकाशित-प्रसारित कर रहे हैं उस संदर्भ में हमने कॉपीराइट उल्लंघन के पहलुओं पर विचार किया है? आज ही दिनेशराय द्विवेदी की एक पोस्ट का हवाला देते हुए उन्होंने यह लिंक भेजा है जिसके अनुसार हम सब जो इस काम में लगे हैं उन्हें सोचना चाहिये। मैं इस दिशा में किसी निर्णय पर नहीं पहुँच पा रहा हूँ। इसलिये इस पोस्ट को एक निवेदन की तरह लिया जाय। यह निवेदन ब्लॉग और इंटरनेट महारथियों से - रवि रतलामी, श्रीश, अविनाश, देबाशीश, मैथिली, सागर नाहर और जीतू चौधरी सहित उन तमाम लोगों से है जिन्होंने हमें चोरी की राह पर ढकेला है। मैं भाई यूनुस, विमल वर्मा, पारुल, अशोक पांडे, प्रमोद सिंह और उन सभी मित्रों से आग्रह करता हूँ जो पूर्व प्रकाशित साहित्य और प्री-रेकॉर्डेड म्यूज़िक अपने ब्लॉग्स या साइट्स पर अपलोड करते हैं, वे बताएं कि क्या हम सब चोर हैं? इस दिशा में क़ानूनी नुक़्तों के मद्देनज़र आप सभी अपने ब्लॉग प्रसारण और प्रकाशन की हलचलों के पक्ष में क्या दलीलें देते हैं।जब तक इन चिंताओं पर कोई ठीक-ठाक पोज़ीशन नहीं ली जाती तब तक के लिये मैं अपने ब्लॉग पर या सामोहिक ब्लॉग्स पर अपनी ओर से ऐसी कोई भी सामग्री प्रसारित-प्रकाशित नहीं करूँगा जिसमें आइपीआर के निषेध का मसला जुडा हो.

इरफ़ान की बात से मुझे पूरा इत्तेफ़ाक़ है और मैं भी आज से कबाड़ख़ाने पर उन्हीं की राह पर चलने का फ़ैसला कर चुका हूं। मैं अपने अन्य कबाड़ी साथियों से यह निवेदन कर रहा हूं कि बिना पूर्व अनुमति प्राप्त किए कोई भी पूर्वप्रकाशित साहित्य अथवा संगीत यहां अपलोड न करें। इन्टरनैट से डाउनलोड की गई तस्वीरों के साथ भी यही बात लागू होगी। व्यक्तिगत रूप से मैं सस्ता शेर और मोहल्ला पर जो संगीत लगाता रहा हूं, उसका सिलसिला भी आज से बन्द।

मैं हिन्दी ब्लागिंग में संलग्न तमाम रचनाशील मित्रों से आग्रह करता हूं कि इस नवीन विधा को आकर्षक बनाए रखने हेतु बाकायदा एक 'पूल' का निर्माण करें जिसमें उन के खींचे हुए फ़ोटोग्राफ़, चित्र इत्यादि सभी के लिए उपलब्ध हों। इस के अलावा जिन जिन कवियों - लेखकों - चित्रकारों - रचनाकारों से व्यक्तिगत आग्रह द्वारा कापीराइट पाया जा सकता हो, उसे प्राप्त करने का जतन करें और बाकी लोगों को बताएं।

अलबत्ता मेरी समझ में अभी तक यह नहीं आया कि दुनिया भर में बिखरी अनेक साइट्स किस तरह torrents अपलोड किए हुए हैं जिनकी मदद से आप दस-दस GB तक की फ़ाइलें डाउनलोड कर सकते हैं। इस साइट्स पर साफ़ साफ़ लिखा होता है कि वे कोई गै़रकानूनी काम नहीं कर रही हैं। ख़ुद मैंने अपने और मित्रों के लिए बीसियों फ़िल्में और हज़ारों गाने इसी तरह इकठ्ठा किए हैं। लेकिन यह भी संभव ही है कि मेरा यह काम गै़रकानूनी पाया जाए।

इस बात में एक मार्के की बात भी छिपी हुई है खा़स कर के हिन्दी के दरिद्र रचनाकारों के लिए। किताबों को प्रकाशक को थमा देने में अपने काम की इति समझ लेने वाले लेखकों को अब से कापीराइट वगैरह जैसे मसाइल पर सावधान हो जाना चाहिए। इस से यह भी हो सकता है कि दशकों से मनमानी करते रहे प्रकाशकों पर नकेल तो लगेगी ही लेखक को अपने काम की कीमत भी पता चलेगी।

मैं सभी साथियों से इस विषय पर बात आगे बढ़ाने और अमूल्य सुझाव देने का अनुरोध भी करता हूं।

फ़िलहाल यह पोस्ट लिखते लिखते मैंने श्री वीरेन डंगवाल, श्री लीलाधर जगूड़ी और सुन्दर चन्द ठाकुर से उनकी सारी किताबों से सारी कविताओं को ब्लाग पर प्रयोग कर लेने की अनुमति ले ली है। यही बात मैं अपनी सारी प्रकाशित पुस्तकों के बारे में कह रहा हूं। हमारे कबाड़ी फ़ोटूकार रोहित उमराव ने भी कबाड़ख़ाने पर लगी हुई सारी तस्वीरों को इस्तेमाल करने की अनुमति भी दे दी है। आदरणीय ज्ञान रंजन जी अर्सा पहले अपनी कहानियों और लेखों के प्रयोग की अनुमति मुझे दे चुके हैं।

मेरे विचार से शुरुआत के लिए कम नहीं है यह।

संगीत पर ऐसा कोई रास्ता किसी की निगाह मैं हो तो बताने का कष्ट करें।

3 comments:

शंकर आर्य said...

हम लोग दलित ही तो हैं.
आरक्षण हमारा हक बनता है.

स्वप्नदर्शी said...

http://swapandarshi.blogspot.com/2008/02/blog-post_25.html
ise bhee dekhe

अजित वडनेरकर said...

कवरवर्जन वालों ने भी कापीराईट कानून का अध्ययन करके ही रास्ते निकाले थे।
इस दुनिया में मौलिक कुछ नहीं है। पैनी निगाह से देखें तो हर कहीं कुछ न कुछ साम्य नज़र आएगा ही। अक्सर पड़ोस की लड़की मुंबईया हीरोइन सी लगती है। अगर सचमुच भी है तो क्या कापीराइट का मामला बनता है ?
यूं भी एक ही तथ्य का कई बार विश्लेषण होता है और आपको संदर्भ देना पड़ता है। तब तो संदर्भ देना भी अपराध होगा ?