Wednesday, September 2, 2009

अपने कने हैगा काम और - और ! उर्फ कीर्तन के सिवा !!


जय लोया - जय पिलाट्टिक.... !

आज 'कबाड़खाना' की सैर करते हुए बाबा मीर तक़ी 'मीर' से मुलाकात हुई आए. आइए सबसे पहले उन्हीं की बात सुनते हैं -

जो इस शोर से 'मीर' रोता रहेगा.
तो हमसाया काहे को सोता रहेगा.


मुझे काम रोने से है अक्सर नासेह,
तू कब तक मेरे मुँह को धोता रहेगा.


बस ऐ गिरिया आँखें तेरे क्या नहीं हैं,
तू कब तक जहाँ को डुबोता रहेगा .



थोड़ा आगे बढ़ा तो आसमान में उगे टेढ़े मुँह के चाँद को देखते हुए मुक्तिबोध साथ हो लिए. सोचा कुछ पूछेंगे लेकिन पूछा नहीं कि - " पार्टनर ! तुम्हारी ....' और एक मुड़े तुड़े कागज पर कुछ घसीट कर 'अँधेरे में' गुम हो गए -


अजीब है ! !
गगन में करफ्यू

धरती पर चुप
जहरीली छी: थू;
पीपल के सुनसान घोंसलॊं में पैठे हैं

कारतूस - छर्रे

इससे
कि हवेली में हवाओं के पल्लू भी सिहरे.
गंजे - सिर चाँद की सँवलाई किरनों के जासूस

साम - सूम नगर में धीरे- धीरे घूम - घाम

नगर के
कोनों के तिकोनों में छुपे हुए
करते हैं महसूस
गलियों की हाय - हाय ! !

चाँद की कनखियों की किरनों ने

नगर छान डाला है

अँधेरे को आड़े - तिरछे काटकर

पीली - पीली पट्टियाँ बिछा दीं,

समय काला- काला हैं !


और अंत में प्रार्थना की तरह किन्तु प्रार्थना के शिल्प में नही -


बड़े - बड़े लोगाँ की बड्डी - बड्डी बात.
कभी करें शह तो कभी करें हैं मात.

अपनी दूकान छोटी छोटा - सा ठौर .

अपने कने हैगा काम और - और !


जय लोया - जय पिलाट्टिक.... !

उदय प्रकाश, नामवर सिंह ,अशोक वाजपेयी के गिर्द पृथ्वी नहीं घूमती . और भी काम हैं अपने पास ; अप्रासंगिक लोगों के कीर्तन के सिवा !

- कहे कबाड़मंडल का एक अदना - सा कबाड़ी।
चलने दो बाबूजी हौले - हौले अपनी भी गाड़ी !



8 comments:

अजित वडनेरकर said...

अजी प्रोफ्सर साब, इसे काक्टेल कहें कि
कोलाज...जो भी बनाया ग़ज़ब बनाया...जै जै हो प्रभु की...

Asha Joglekar said...

jay loya jay pilattik aur jay kabadi.

अनूप शुक्ल said...

जय हो! सिद्धेश्वर गुरु की जय हो! ऐसेई झन्नाटेदार कोलाज दिखाते रहें।

Ashok Pande said...

जय लोया - जय पिलाट्टिक.... !

उदय प्रकाश, नामवर सिंह ,अशोक वाजपेयी के गिर्द पृथ्वी नहीं घूमती . और भी काम हैं अपने पास ; अप्रासंगिक लोगों के कीर्तन के सिवा !

Arshia Ali said...

Bahut badhiya, ye shama jalaaye rakkhen.
( Treasurer-S. T. )

डॉ .अनुराग said...

इस कोकटेल के पहले दो मिक्सचर धाँसू है जी....सर चढ़कर बोलते है

Ek ziddi dhun said...

तीनों नाम सही ही एक साथ लिखे हैं, एक ही राजनीती है तीनों की, एक ही प्याला, एक ही थाली. मीर और मुक्तिबोध को सही ही उल्लेख किया है और आपकी पंक्तियाँ भी सही जगह निशाना लाती हैं.

मुनीश ( munish ) said...

सुनते हैं आप काफी समय अरुणाचल में रहे तो क्यों न कुछ समय निकाल कर वहां के बारे में लिखें सिद्धेश्वर भाई . यात्रा वृत्त के अलावा तमाम साहित्यिक विधाएं और साहित्यिक बहसें समाज को पीला पीला और बीमार बना रही हैं !