Tuesday, September 22, 2009

कविता क्या है ?

( आज काफी लम्बे समय बाद `तार सप्तक´ पढ़ने बैठा । प्रभाकर माचवे की एक कविता 'कविता क्या है ?' पर आ कर अटक गया । क्या करूं ? बाबा रामचंद्र शुक्ल और मार तमाम आलोचक , समीक्षक , आचार्य , लेखक , कविगण इस बाबत बहुत कुछ कह गए हैं . साहित्य के विद्यार्थियों को 'काव्यशास्त्र' वाले पेपर की तैयारी में घिसते - पिसते आपने भी देखा होगा . हिन्दी ब्लाग की बनती हुई दुनिया में भी कविताओं की उपस्थिति सबसे ज्यादा दिखाई देती है. साथ ही यह भी सुनने - देखने को मिल रहा है कि साहब 'कविता' और 'ब्लाग की कविता' दो जुदा - जुदा चीजें हैं - एकदम अलहदा . दोस्तो ! तनिक बताओ तो कविता क्या है ? अगर कुछ बताने का मन न हो तो देख ही लो कि माचवे जी की कविता के हिसाब से - 'कविता क्या है ?' )

कविता क्या है ? कहते हैं जीवन का दर्शन है-आलोचन ,
( वह कूड़ा जो ढंक देता है बचे-खुचे पत्रों में के स्थल ।

कविता क्या है ? स्वप्न वास है उन्मन कोमल ,
( जो न समझ में आता कवि के भी ऐसा है वह मूरखपन )

कविता क्या है ?आदिम कवि की दृग झारी से बरसा वारी-
( वे पंक्तियां जो कि गद्य हैं कहला सकतीं नहीं बिचारी ) !

( `तार सप्तक´ -हिन्दी के सात कवियों का पहला संकलन । स . ही. वात्स्यायन 'अज्ञेय' के संपादन में 1943 में छपा और खासा चर्चित हुआ )

10 comments:

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

kavita,ka vita hai,

रंजना said...

आपके विचार पूर्ण रूपें स्पष्ट न हो पाए इस आलेख में.....हो सके तो आलेख को तनिक और विस्तार दे ise स्पष्ट करें....

मुनीश ( munish ) said...

आज से कई साल पहले एक चर्चित विश्व कविता कांफ्रेंस की रिपोर्ट पढी थी धर्मयुग में
जिसमें कविता को बलगम और खुजली का पर्याय बताया था किसी विदेशी कवि ने !

शरद कोकास said...

वाह तार सप्तक की याद दिलाई आपने खूब । लेकिन लगभग हर कवि ने एक न एक परिभाषा तो लिख ही डाली है कविता की मै अपनी वाली सुनाऊँ ..अरे अरे आप चौंक क्यों गये सिद्धेश्वर जी .।. खैर फिलहाल तो केदार जी की वह कविता याद आ रही है " कविता क्या है /हाथ की तरफ उठा हुआ हाथ /.... और भी कुछ कुछ था ..बालों के गिरने पर नाई की चिंता .. । खैर धन्यवाद ।

Dr. Shreesh K. Pathak said...

.....अब तो कहूँगा...
"कविता..जो कुछ कहलवा जाये आपसे...."

प्रीतीश बारहठ said...

श्रीमान्,

यह कविता की नहीं कवियों की परिभाषा हैं। कविता को सबको बर्दाश्त करना है। बेचारी !!!

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

मक्सिम गोर्की के संस्मरण के अनुसार लेव तोलस्तोय ने उनसे कविता को लेकर कहा था कि कविता कुछ-कुछ ऐसी चीज़ है जिसे वह गाना तो चाहते हैं लेकिन बता नहीं पा रहे कि क्या गाना चाहते हैं. यानी अपने यहाँ के 'गूंगे का गुड़.'

Arvind Mishra said...

सच है न तो विषय का प्रवर्तन ही ठीक हुआ और न ही विवेचन -जल्दियाते काहे हैं भाई ! ठीक है यह कविता तार सप्तक में आयी थी मगर इसके पूर्ववर्ती और उत्तरवर्ती कवियों ने कविता को क्या ही व्याख्यायित किया है आपने तो दुखदी रंग छेड़ी और तडपता छोड़ गए ! माफ़ नहीं करूगा जब तक कविता क्या है पर घणी सामग्री न परस दी जाय यहाँ -आतुर प्रतीक्षा है !

कामता प्रसाद said...

मेरी राय भी अरविंदर मिश्रा जी से मिलती है पर उसके पहले http://www.petitiononline.com/Gkp2009/

गोरखपुर के मजदूरों से जुड़े इस हस्‍ताक्षर अभियान पर गौर करें और अगर आप ठीक समझें तो अपना समर्थन प्रदान करें।

मुनीश ( munish ) said...

कविता क्या है ?आदिम कवि की दृग झारी से बरसा वारी-
( वे पंक्तियां जो कि गद्य हैं कहला सकतीं नहीं बिचारी ) !
It says it all . Modern Hindi poetry is explained adequately by these lines . Poetry is dead . It is the age of prose .