Sunday, September 27, 2009

दुनिया शिमले से आगे और चान्सल से पीछे की ...


नैनीताल और मसूरी की भांति, बढ़ती आबादी और वाहन शिमला का भी मट्ठ मार चुके हैं मगर फिर भी सितम्बर से मार्च तक ये पर्वतीय नगर सेवनीय हैं. इन दिनों तो ये तीनों नगर खासकर जाने लायक होते हैं चूंकि वर्षा के बाद आसमान की असल रंगत का नज़ारा इन दिनों देखने लायक होता है . कहने को शिमला अंग्रेज़ों की समर-कैपिटल थी ,साल के आठ महीने राज -काज यहीं से चलता था मगर कोई ऐसी कशिश यहाँ नहीं पाता कि बार-बार यहाँ आऊँ . आता फिर भी हूँ ..बस रात भर ठहर अल्लसुबह जाखू मंदिर में मत्था टेक आगे निकल जाने के लिए . आगे याने ,कुफरी-फागु- थियोग-छैला-कोटखाई-खडा पत्थर-हठकोटी-रोहडू -चड गाँव . दरअसल शिमला तक तो बोली-बानी -भेस में पंजाबियत ही हावी है . असल हिमाचल की छटा तो शिमला के बाद दिखती है . शिमला से तत्ता पानी के गर्म चश्मों से होकर मनाली का भी रास्ता है . थियोग से छैला न मुडे तो सीधे किन्नोर जा निकलेंगे . बहरहाल , रोहडू और चड गाँव की तरफ पर्यटन कम है मगर सड़क मस्त है , सुविधाएँ ठीक ठाक हैं और नज़ारे से भी ज्यादा मज़ा इस रास्ते पर ड्राइव में है . कोटखाई में तेजी से नीचे आकर खडा पत्थर की चढाई आपको एकदम ८००० फुट की ऊँचाई पर ले जायेगी और हवा में तेजी से ठंडक का लुत्फ़ आप ले सकते है . हठकोटी में देवी हठेश्वरी यानि पारवती, शंकर जी के साथ बिराजती हैं . मंदिर बहुत पुराना और बौद्ध पगोडा शैली का है . साथ-साथ नदी बहती चलती है और कहीं कहीं आप बिलकुल नदी के लेवल पर चलते हैं . अभिनेत्री प्रीती झिन्गता उर्फ़ जिंटा यहीं रोहडू के पास की हैं . प्रीती के गालों और यहाँ के सेबों दोनों में साम्य है भी ! बहरहाल रोहडू में सेब की मंडी होने के चलते ट्रांसपोर्ट वाले बहुत हैं और यहाँ से सीधे चड गाँव निकल कर आगे बीसेक किलोमीटर ,जहाँ तक सड़क बनी हुई है, पहुंचना चाहिए . मनोरम जगह है बशर्ते ड्राइव का लुत्फ़ लेने का शौक़ आप रखते हों . रुकने के लिए रोहडू में हिमाचल पर्यटन का सुन्दर गेस्ट हाउस सस्ती दर पर पूरी क्वालिटी के साथ मौजूद है ,और क्या जान लोगे बाऊ जी ? नीचे लगायी गयी तस्वीरें मेरे डिजीटल युग में आने से पहले की हैं मगर खींची मैंने ही हैं .
'' पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाडों के कभी काम नि आनी '' , चौकीदार परमेशरी निर्विकार भाव से बीडी सुलगाते हुए कहता है । ''उसकी बात में दम है बॉस ! '' मेरा दोस्त रोह्डू के ताज़े , रसीले सेब का लुत्फ़ लेते हुए सुर में सुर मिलाता है । मैं हठेश्वरी मन्दिर के करीब बहती बिष -कुल्टी को देखते हुए हैरान होता हूँ की इसे विष की नदी क्यों कहा गया । ये भी तो और नदियों की तरह वनस्पति और पशु, पक्षी को पोसती है ,इंसान की भी प्यास बुझाती है । सेब , हठेश्वरी मन्दिर और प्रिटी जिंटा के अलावा रोह्डू का कोई और' क्लेम टू फेम ' नहीं है । सैलानी यहाँ कम ही आते हैं । ' रोड एंड्स हियर ' लिखे बोर्ड तक पहुँच कर हमने जाना की जगह का नाम टिर्की है । आगे भी सड़क बनेगी बताते हैं ''चान्सल तक जैगी साब्ब जी , उधर दुनिया का सबसे बड़ा रिजोर्ट बनेगी बरफ का खेल की '' सड़क महकमे का ओवेरसीर कहता है । '' ''यानी हम लोग यहाँ सही टाइम पे आ गए बाऊ जी वरना कल को यहाँ भी वही रंड -रोना शुरू हो जाना हैगा '' कजिन हिमांशु कहता है और मैं सब पहाडों की इकलौती पसंद कैप्स्तान सिगरेट का कश खींचते हुए कहता हूँ '' बात में दम है बॉस'' !










5 comments:

sanjay vyas said...

आर्श्चय है, प्रीति जिंटा में " असीं पंजाब दा" कहने वालों की तरह " मैं हिमाचली कुड़ी " कहने का आग्रह कभी दिखा नहीं. या मैं चिन्हित नहीं कर पाया हूँ.हो सकता है पहाडी विनम्रता बहुत ज़्यादा छोंक- बघार में विश्वास नहीं करती.
बढ़िया आलेख.मैंने नीचे नाम देखने से पहले ही अंदाजा लगा लिया था कि लेखनी मुनीश जी की ही है.

कामता प्रसाद said...

उम्‍दा तस्‍वीरों एवं बेहतरीन आलेख प्रस्‍तुत करने पर बधाई स्‍वीकार करें।

के सी said...

बहुत दिनों तक ऊब से भरे बासी शब्दों को पढ़ते रहने के कारण मुझे लगा नहीं कि ये खूबसूरत नजराना मुनीश भाई की कलम से है, मयखाना पर पढी फिरंगन पोस्ट के बाद आज ही फिर लगा कि कुछ पढा है, सोच के स्तरपर शानदार और बेहद दिलचस्प !

Anil Pusadkar said...

शानदार।ऐसा लग रहा है कि उन खूबसुरत वादियो मे पंहुच गये है।

Unknown said...

प्रीति को पहली ही फिल्म में देखकर तमाम कबाड़ी समझ गए थे कि हिमाचल के बगान की है।
बढिया आलेख एवम तस्वीरों के लिए बधाई।