Sunday, October 18, 2009

मोहब्बत से होता है नशा जो नहीं पूछती : "कैसी हो?"



मैं जीती हूं क्योंकि

मुझे नशा हो जाता है पारदर्शी चीज़ों से.
कविता करती है ऐसा,
अल्कोहल करता है,
वह डगमग बच्चा
जिसका लोई जैसा चेहरा कल देखा था,
मोहब्बत से होता है नशा जो नहीं पूछती : "कैसी हो?"
मैट्रो में भरते स्कूली लड़कियों के ठहाके
गुड़ीमुड़ी किए जाने को तैयार सफ़ेद काग़ज़
बाहर खिड़की के परे बारिश
बारिश की बूंदों के ऊपर नन्हे पिल्ले का भौंकना
रोज़ भुनभुनाना मां का.
मैं जब भी लड़ती हूं किसी से, पारदर्शी हो जाती हूं
भीषण पारदर्शी
आज़ाद तरीके से पारदर्शी
यह प्रमाण होता है कि सब कुछ अब भी ठीकठाक है मेरे साथ
प्रमाण है कि मैं दर्द को महसूस कर सकती हूं
कि कोई ज़िन्दा है अभी भी.
जिस दिन पारदर्शिता के साथ आपस में लड़ती हैं पारदर्शी चीज़ें
आपको नशा हो ही नहीं सकता, चाहे कितनी ही पी लो!

---------------------------------------------------

आज आपके लिए सियोल में रहने वाली युवा कवयित्री चोई युंग-मी की चन्द कविताएं लाया हूं. उनकी कविताओं में शहरी यथार्थवाद और ऐन्द्रिकता का बेहतरीन संयोजन पाया जाता है. उनकी काव्य-चेतना १९८० के दशक के अन्तिम सालों में उभरी जब कोरिया सैन्य शासन से लोकतान्त्रिक की दिशा में बढ़ा. उनकी रचनाओं में इस परिवर्तन से होने वाले गुणात्मक बदलावों की आशा और ऐसा न होने पर एक ख़ास क़िस्म का नैराश्य और मोहभंग दृष्टिगोचर होते हैं. अपने देश में उन्हें उत्तरआधुनिकतावाद के शुरूआती रचनाकारों में गिना जाता है.

----------------------------------------------------
तीस की उम्र, क़िस्सा तमाम

जाहिर है मैं जानती हूं
मुझे क्रान्ति से ज़्यादा भाते थे क्रान्तिकारी
बीयर के गिलास से ज़्यादा बीयर-पब
विरोध में गाए जाने वाले वे गीत नहीं
जो "ओ मेरे कॉमरेड!" से शुरू होते थे
बल्कि मद्धम आवाज़ में गुनगुनाए जाने वाले प्रेमगीत
मगर मुझे बताओ न - तो भी क्या!
तमाम हुआ क़िस्सा
बीयर निबट चुकी, एक-एक कर लोग सम्हालते हैं
अपने बटुए,
अन्त में तो वह भी जा चुका, लेकिन
बिल सब ने चुकाया मिल-बांट कर,
और सब जा चुके अपने जूतों समेत-
मुझे मद्धम सी याद तब भी है कि
यहां कोई एक रह जाएगा पूरी तरह अकेला
शराबख़ाने के मालिक के वास्ते मेज़ें पोंछता,
अचानक गर्म आंसू, याद आता हुआ सब कुछ,
अचानक कोई दोबारा गाने लगेगा अधूरा छोड़ दिया गया गीत
-शायद मैं जानती हूं
कोई एक सजाएगा एक मेज़, भोर से पहले
इकठ्ठा करता लोगो को
कोई रोशन कर देगा रोशनियां, मंच बना देगा नया
मगर कोई मुझे बताओ तो - तो भी क्या!

अतृप्त प्रेम

एक अजनबी की कार के भीतर -
उसने लिफ़्ट दी थी मुझे:
सीट-बैल्ट से बंधी एक निश्शब्दता,
एक के ऊपर एक धरी टांगों में गिरफ़्तार एक कल्पना
आईने में पकड़ ली गई
धकेलती, धकियाई जाती -
ख़ुद को अन्धा बना लेने वाला निष्कम्प एक ध्यान!

16 comments:

Dr. Shreesh K. Pathak said...

आपकी पारदर्शिता का कायल हुआ, मै तो..

Mishra Pankaj said...

अत्यंत मनोरंजक भाई आपने गजब लिखा है

Ambarish said...

मुझे क्रान्ति से ज़्यादा भाते थे क्रान्तिकारी
accha hai ji..
उसने लिफ़्ट दी थी मुझे:
सीट-बैल्ट से बंधी एक निश्शब्दता,
एक के ऊपर एक धरी टांगों में गिरफ़्तार एक कल्पना
kya baat hai... bahut khoob...

समयचक्र said...

बहुत बढ़िया रचना दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये .

रागिनी said...

बहुत शानदार कवितायें. अनुवाद का शुक्रिया !

Udan Tashtari said...

बहुत बहुत आभार इन रचनाओं के लिए.

मनीषा पांडे said...

बहुत बहुत अच्‍छी कविताएं हैं अशोक। सचमुच बहुत ही अच्‍छी।

Syed Ali Hamid said...

Well, Ashok, at thirty, one may ask 'so what?'. At fifty-five, lights, people and a table laid with things described are enough. I wouldn't ask such questions. Will you, even in your naughty forties?

डॉ .अनुराग said...

एक अजनबी की कार के भीतर -
उसने लिफ़्ट दी थी मुझे:
सीट-बैल्ट से बंधी एक निश्शब्दता,
एक के ऊपर एक धरी टांगों में गिरफ़्तार एक कल्पना
आईने में पकड़ ली गई
धकेलती, धकियाई जाती -
ख़ुद को अन्धा बना लेने वाला निष्कम्प एक ध्यान!








ये वाली सबसे बेहतर है .

सागर said...

मैं जब भी लड़ती हूं किसी से, पारदर्शी हो जाती हूं
भीषण पारदर्शी
आज़ाद तरीके से पारदर्शी

मुझे क्रान्ति से ज़्यादा भाते थे क्रान्तिकारी
बीयर के गिलास से ज़्यादा बीयर-पब
विरोध में गाए जाने वाले वे गीत नहीं
जो "ओ मेरे कॉमरेड!" से शुरू होते थे

एक के ऊपर एक धरी टांगों में गिरफ़्तार एक कल्पना

सहेज कर रखने वाली चीज़ है और हाँ रख लिया है... शुक्रिया...

Arshia Ali said...

बहुत ही सुंदर भाव हैं। आपकी कल्पना शक्ति और शब्द व्यंजना लाजवाब कर देती है।
( Treasurer-S. T. )

पंकज said...

आभार, दूसरी दुनियाँ की सुंदर रचनायें हम तक लाने के लिये.

स्वप्नदर्शी said...

Ashok,
could you please include an index of labels or some other way so that a visitor of this blog can find the older posts easily?

Unknown said...

अभिव्यक्ति की निर्भीक सामुराई हो तुम चोई।

BAD FAITH said...

आपका ब्लाग शानदार है.विश्व मानसिकता से जोड्ने के लिये धन्यवाद. एक नही सभी रचनायें उत्क्रिस्ट हैं.बधाई.

सुशील छौक्कर said...

वाह एक से एक बेहतरीन रचना पढकर आनंद आ गया।