Monday, October 26, 2009

मुझे इस वशीकरण के पाश से मुक्त करो

निज़ार कब्बानी (1923-1998) न केवल सीरिया में बल्कि साहित्य के समूचे अरब जगत में प्रेम , ऐंद्रिकता , दैहिकता और इहलौकिकता के कवि माने जाते हैं ( हालाँकि वे सिर्फ इतना भर ही नहीं हैं !) इस वजह से उनकी प्रशंसा भी हुई है और आलोचना भी किन्तु इसमें कोई दो राय नहीं है कि उन्होंने अपनी कविता के बल पर बहुत लोकप्रियता हासिल की है. तमाम नामचीन गायकों ने उनके काव्य को वाणी दी है. साहित्यिक संस्कारों वाले एक व्यवसायी परिवार में जन्में निज़ार ने दमिश्क विश्वविद्यालय से विधि की उपाधि प्राप्त करने के बाद दुनिया के कई इलाकों में राजनयिक के रूप में अपनी सेवायें दीं जिनसे उनकी दृष्टि को व्यापकता मिली. उनके अंतरंग अनुभव जगत के निर्माण में स्त्रियों की एक खास भूमिका रही है ; चाहे वह बहन की आत्महत्या हो या बम धमाके में पत्नी की मौत. निज़ार कब्बानी की किताबों की एक लंबी सूची है. दुनिया की कई भाषाओं में उनके रचनाकर्म का अनुवाद हुआ है.इस कवि और गद्यकार के जीवन प्रसंगों पर जल्द ही अलग से और विस्तार से . अभी तो प्रस्तुत हैं उनकी दो कवितायें -


मैं शब्दों से जीत लूँगा संसार

मैं शब्दों से जीत लूँगा संसार
जीत लूँगा -
मातृभाषा को
संज्ञा को
क्रिया को
वाक्य विज्ञान को
हाँ ,सब कुछ को जीत लूँगा मैं मात्र शब्दों से ।

बुहार कर रख दूँगा
चीजों के उपजाव व आग़ाज़ को
और एक नई भाषा में चीन्हूँगा
पानी का संगीत और आग का संदेश ।

तुम्हारी आँखों में
मैं जगमग करूँगा आने वाले वक्त को
स्थिर कर दूँगा समय की आवाजाही
और काल के असमाप्य चित्रपट से
पोंछ दूँगा उस लकीर को
जिससे विलग होता है यह क्षण ।


समुद्र के तल से एक पत्र

अगर तुम मेरे दोस्त हो
तो मदद करो कि तुमसे जुदा हो सकूँ
या फिर गर हो तुम मेरे महबूब
तो मदद करो कि मैं मुहब्बत की मार से बच जाऊँ ।
अगर मालूम होता कि समुद्र बहुत गहरा है
और मुझे नहीं आती तैरने की तरकीब
तो यहाँ नहीं ही रखता अपने पाँव ।
अगर मुझे मालूम होता
कि कैसे करना है खुद का खात्मा
तो शुरुआत ही नहीं करता इस सिलसिले की ।

मुझे तुम्हारी चाह है सो, मुझे सिखाओ ख्वाहिशें न करना
मुझे सिखाओ
कि कैसे काट देना है प्रेम की जड़ को गहराई से ।
मुझे सिखाओ
कि कैसे आँखों में ही करनी है आँसुओं की मौत
और प्रेम को किस विधि से करना है आत्महत्या के लिए प्रेरित ।

अगर तुम फरिश्ते हो
तो मुझे इस वशीकरण के पाश से मुक्त करो
नास्तिकता के भँवर से पार करो मेरा बेड़ा ।
तुम्हारा प्रेम नास्तिकता जैसा है
मुझे इससे शुद्ध करो
कर दो मेरे अस्तित्व को निष्पाप ।

अगर तुम बलशाली हो
तो मुझे इस समुद्र से बाहर निकालो
क्योंकि मुझे नहीं आती तैरने की तरकीब ।
तुम्हारी आँखों की नीली लहरें
मुझे गहराइयों की ओर खींच रही हैं
नीला..
नीला...
कुछ नहीं बस हर ओर एक ही नीला रंग ।
मुझे प्यार का कोई तजुर्बा भी नहीं
और कोई नौका भी नहीं दीख रही है आसपास ।

अगर मैं तुम्हें प्रिय हूँ , तनिक भी
तो थाम लो मेरा हाथ
मैं सर से पाँव तलक ख्वाहिशों से भर कर
होता जा रहा हूँ भारी ।

मैं बमुश्किल
पानी के भीतर ले रहा हूँ साँस
मैं डूब रहा हूँ...
डूब रहा हूँ...
डूब रहा हूँ... ।

11 comments:

शायदा said...

बहुत बढि़या प्रस्‍तुति।

Unknown said...

आनन्द से भर दिया.........

अभिभूत कर दिया

वाह !

शरद कोकास said...

निज़ार कब्बानी की इन दोनो कविताओं में प्रेम ऐन्द्रिकता , दैहिकता और इहलौकिकता के तत्व जिसके लिये वे जाने जाते है अपने रूपक में उपस्थित हैं । आंखो के बिम्ब मे न केवल अपने आप को अभिव्यक्त करने की छटपटाहट है बल्कि तत्कालीन स्थितियों के प्रति विद्रोह भी है , एक आस्था शब्दों की शक्ति के प्रति और प्रेम की भी ।
इन बेहतरीन कविताओं के लिये धन्यवाद सिद्धेश्वर जी ।

Dr. Shreesh K. Pathak said...

अगर तुम फरिश्ते हो
तो मुझे इस वशीकरण के पाश से मुक्त करो
नास्तिकता के भँवर से पार करो मेरा बेड़ा ।
तुम्हारा प्रेम नास्तिकता जैसा है
मुझे इससे शुद्ध करो
कर दो मेरे अस्तित्व को निष्पाप ।

इस अमोल कविता व कवि से परिचय कराने के लिए आभारी हूँ...

स्वप्नदर्शी said...

bahut achche!
thanks for sharing

सागर said...

दोनों कविता अद्भुत, आंतरिक भावः को पुर्णतः शब्द देते हुए लगते हैं... मैंने अपने डायरी में लिख लिया है... मुझे नहीं लगता विचारों को इतने स्पस्ट तरीके से भी लिखा जा सकता है... हर्फ़-ब-हर्फ़ अन्दर धंसती जाती है... मैंने कैसे आपका शुक्रिया अदा करूँ... आप बताएं... निज़ार कब्बानी से तार्रुफ़ कराया, बताया और सिखाया बहुत कुछ... आज का दिन सफल है...

Ambarish said...

acche rachnakar, acchi rachna...
prastuti ke liye shukriya..

अजीत चिश्ती said...

atyant mohak aur mulywan kavita.kavita ka ek naya pratibimb aur pratiman hai. padhwane ke liye shukriya.

डॉ .अनुराग said...

पहली कविता अद्भुत है ......

Ashok Kumar pandey said...

व्यग्र कर देने वाली कवितायें

ravindra vyas said...

सिद्धेश्वर जी. क्या इस कवि को कुछ और कविताएं पढ़ने को मिलेंगी।