Tuesday, February 8, 2011

चित्रों में झांकता जैसलमेर

"घोड़ा कीजे काठ का, पिंड कीजे पाषाण
बख्तर कीजे लोह का, तब देखो जैसाण."
जो जैसलमेर आना चाहे उसके पास ऐसा घोड़ा हो जो थके नहीं (सिर्फ काठ का निर्जीव ही ऐसा हो सकता है), उसका शरीर पत्थर का हो,उस पर उसने लोहे का बख्तर पहन रखा हो तभी वो जैसलमेर पहुँच सकता है.
जैसलमेर के दुर्गम्य होने की बातें हमेशा कही जाती रही है.कुछ साल पहले तक सरकारी महकमे में जैसलमेर- बाड़मेर ट्रान्सफर का मतलब काले पानी जाना होता था. सरकारी तबादले में जैसलमेर जाने के लिए 'जा-साले-मर !' कहना चलन में रहा है.पर सारी बातें अब पुरानी और बासी हो चुकी है.लोग आज भी चाहे वहां ट्रान्सफर लेना पसंद न करते हों,घूमने के लिहाज से एक कम्प्लीट पैकेज है जैसलमेर.
तो लीजिये साहेबान,पेश है जैसलमेर की कुछ छंटेल फोटुएं.



10 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

इतना भी बुरा नहीं पोस्टिंग के लिये। बड़े सुन्दर चित्र।

कविता रावत said...

जैसलमेर की कुछ छंटेल फोटुएं dekh man baag baag ho gaya.. isi bahani ham bhi dekh liye..aabhar

Neeraj said...

बढ़िया फोटू लगायी है भाई,
राजस्थान घूमने का मौका टलता जा रहा है |

डॉ .अनुराग said...

इस साल आना तय है....ये ओर पुष्कर ....दो जगह रह गयी है......

abcd said...

वादा तो नही था ...............
पर लगा था इस बसन्त मे भी
..... नज़ीर आयेन्गे शायद /

daanish said...

चित्रावली
बहुत सुन्दर और मनमोहक है
यात्रा कर लेने जैसा ही आनंद मिला ...
अभिवादन .

डॉ. मोनिका शर्मा said...

मनभावन चित्र ......धन्यवाद

OM KASHYAP said...

सुन्दर चित्र धन्यवाद

मुनीश ( munish ) said...

to hell with posting say cheers to this post ! lovely , wish i had a diesel guzzling SUV or petrol eater Gypsy !!

Ek ziddi dhun said...

Sanjay Bhai, itne khoobsoorat photu chipkaoge to apka cha-pani ka kharch badhna tay hai.