ह्यूमेनिटीज़ के तो नहीं
-संजय चतुर्वेदी
हमारे विश्विद्यालयों के
समाजशास्त्र-राजनीति-इतिहास
भाषा-साहित्य-कला और दर्शन के विभागों में
ये लोग कहां से
और किस विधि से आकर जम गए
कितने द्वेष
कितनी घृणा
कितने अहंकार से भरे
कैसे सामन्ती
कैसे असारस्वत संस्कार से भरे
अपनी मेधाहीन प्रभा में
कितने अन्धकार से भरे
अपने को महाश्याणा
और शेष संसार को उल्लू का पट्ठा समझने वाले
बुद्धि, प्रतिभा और
चरित्र के सहज शत्रु
शाम होते ही कितने दयनीय
ये किन्हीं और विधाओं के लोग होंगे
ह्यूमेनिटीज़ के तो नहीं
(2016)
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