Saturday, September 12, 2009

कबाड़ख़ाने की हजारवीं पोस्ट !


यह कबाड़ख़ाने की हजारवीं पोस्ट है।

अब है सो है ; इसमें ऐसी कोई खास बात तो नहीं ! असंख्य संख्याओं के बीच हजार भी एक संख्या है - एक गिनती , एक काउन्ट , लेकिन एक कबाड़ी की निगाह में यह सिर्फ इतना ही भर नहीं है. इसलिए 'दो शब्द' कहने का मन कर रहा है. अब जब आप सभन ने 'नौ सौ निन्यानबे' सुन ली तो ये हजारी बयान भी सुन ही लेवें -

* सबसे पहले तो 'कबाड़ख़ाना' के सभी पाठको, दर्शकों और श्रोताओं के प्रति ढ़ेर सारा आभार - थैंक्यू - धन्यवाद - शुक्रिया !

** आज से लगभग दो बरस पहले इस साझे ब्लाग की शुरुआत हुई थी. शुरू में यह क्या हो , कैसा हो टाइप का कोई स्पष्ट खाका भी नहीं था ; था तो बस यह कि मिल - मिला कर 'कुछ अच्छा और अलग - सा' करना है और धीरे - धीरे सबके सहयोग से गाड़ी आगे बढ़ती गई और आज आलम यह है कि एक बरस में पाँच सौ पोस्ट का औसत चल रहा है. ये पोस्ट्स विविधवर्णी हैं , विविध प्रकार के रुचि - संपन्न लोगों के द्वारा प्रस्तुत. इन दो सालों में कई साथी जुड़े़ और आपने आपको 'श्रेष्ठ कबाड़ी' सबित करने के काम में लगे रहे. सभी की मिहनत और महत्व को सलाम !

*** अब इस मोड़ तक पहुँचकर यह लग रहा हा है कि 'कुछ अच्छा और अलग - सा' करने की मंशा कुछ हद तक आकार लेती दीख रही है. अब ऐसी विनम्रता भी किस काम की कि - साहब, हमने तो कुछ किया ही नहीं ! और न ही ऐसा कोई मुगालता ही है कि - कोई बहुत बड़ा तीर मार लिया है ! फिर भी पीछे मुड़कर देखने पर संतोष का अनुभव जरूर हो रहा है कि कबाड़ियों की टीम ने उम्दा व तरह-तरह का कबाड़ डिस्प्ले किया जिसमें 'कुछ अच्छा और अलग - सा' करने की ईमानदार नीयत निहित थी .

**** कुल मिलाकर यह कि अपनी दुकान लग रहा है कि सई चल रई दिक्खे है। यह तो अपना कहना है बाकी तो - अपने गिराक बतांगे कि कैसा चल रिया है 'कबाड़ख़ाना' !
@ थोड़ा लिखना , ज्यादा समझना .अतएव अर्जेन्टीना के महाकवि रॉबेर्तो हुआर्रोज़ की 'वर्टिकल पोइट्री' से प्रस्तुत है एक अंश -

हर चीज़ अपने लिये हाथ बनाती है।
मिसाल के तौर पर पेड़
हवा को बाँटने के लिये।

हर चीज़ अपने लिये पाँव बनाती है
मिसाल के तौर पर घर
किसी का पीछा करने के लिये।

हर चीज़ अपने लिये आँखें बनाती है
मिसाल के तौर पर तीर
निशाने पर लगने के लिये।

हर चीज़ अपने लिये जीभ बनाती है
मिसाल के तौर पर गिलास
शराब से बात करने के लिये।

हर चीज़ अपने लिये एक कहानी बनाती है
मिसाल के तौर पर पानी
दूर तक साफ़ बहने के लिये।

***** एक बार फिर आभार। 'कुछ अच्छा और अलग - सा' करने के वास्ते साथ ही 'दूर तक साफ़ बहने के लिये' आपका साथ बने रहने की उम्मीद.
( ऊपर लगी पेंटिंग रवीन्द्र व्यास की है )

28 comments:

Chandan Kumar Jha said...

हजारवें पोस्ट की बधाई ।

शायदा said...

एक हज़ार पोस्‍ट...बहुत बड़ी बात है। मुझ जैसी ब्‍लॉगर के लिए तो असंभव से आगे ही समझिए, बहुत-बहुत मुबारकबाद स्‍वीकार करें। पांच सौवीं पोस्‍ट पर मुझे हैरानी हुई थी, आज खु़शी है कि हमारे देखते-देखते ये हज़ार हो गईं। मैं अपनी बात कहूं तो हमेशा इस ब्‍लॉग पर आकर कुछ नया सीखा है, जाना है। कई पोस्‍टों के साथ निजी जुड़ाव भी रहा है। बहरहाल, टिप्‍पणी में ज्‍़यादा जगह न खाते हुए एक बार फिर से बधाई। पेंटिंग, कविता पोस्‍ट और नीयत सब बढि़या है, आगे भी बढि़या रहे ऐसी दुआ है।

वाणी गीत said...

कबाड़खाना को भानुमती का पिटारा कहना ज्यादा न्यायोचित होगा
एक हजारवीं पोस्ट के लिए बहुत बधाई और भविष्य के लिए बहुत
शुभकामनायें..!!

Udan Tashtari said...

हजारवें पोस्ट की बधाई और बहुत शुभकामनाऐं.

अविनाश वाचस्पति said...

हर पोस्‍ट अपने लिए
टिप्‍पणियां बनाती है
सौहार्द बांटने के लिए।

जब नाम ही कबाड़खाना है तो हमें तो इसकी 10हजारवीं पोस्‍ट का इंतजार है और आपको अगले एक वर्ष में इस मुकाम तक पहुंच ही जाना चाहिए।
फिर भी इतने के लिए बधाई अभी ले लो और दस हजारवीं के लिए अग्रिम बधाई।

संजय तिवारी said...

बधाई.

अफ़लातून said...

सभी कबाड़ियों का जिन्दाबाद ।

डा. अमर कुमार said...


मैं समझता हूँ कि हज़ार पोस्ट से बड़ी उपलब्धि ’ कबाड़ियों ’ के कंसिस्टेन्ट कबाड़ी बने रहने की है,
वह हर तरह के कबाड़ में भी काम की चीज चुनना और अपनी दुकान पर सजाना जानते हैं ।
बधाई हो ।

seema gupta said...

हजारवीं पोस्ट की बधाई और शुभकामनाऐं

regards

राजकुमार ग्वालानी said...

हजारवें पोस्ट की बधाई

Ashok Kumar pandey said...

सबको बधाईयां

Anil Pusadkar said...

हज़ारवीं पोस्ट की बहुत-बहुत बधाई।यंहा रायपुर के कबाड़ी लखपति और करोड़पति हो गये है तो अपना कबाड़खाना भी अब ज़ल्द से ज़ल्द हज़ारी से लखपति बने।

कामता प्रसाद said...

अच्‍छा लगा यह जानकारी पाकर। आज हल्‍द्वानी वाले अशोक पांडेय की कही एक बात का प्रतिकार करने का मन कर रहा है। उन्‍होंने इसी कबाड़खाने पर कहीं लिखा है कि यह न तो उदात्‍त कर्म था और न ही मिशन। इस पर मेरी सोच इस प्रकार है :

वैज्ञानिक युग की संतानों के दिल-बहलाव की सामग्री प्रस्‍तुत करना माने संस्‍कृति-कर्म मिशन भी है और जाहिर है उदात्‍त कर्म भी।
चिंतन-मनन करने वाला मनुष्‍य बनना और ऐसा बनने में दूसरों की मदद करना उदात्‍त कर्म नहीं तो और क्‍या है और अगर मध्‍यवर्ग का बुद्धिजीवी ज्ञान-प्रसारक अपनी भूमिका का निर्वाह नहीं करेगा तो मुक्तिबोध के यहां तो वह भूत ही बना रहेगा, उसे मुक्ति नहीं मिलेगी।

हां, यह अलग बात है कि मध्‍यवर्गीय बुद्धिजीवी वर्गीय रूपांतरण करके इतिहास को आगे की ओर ले जाने वाले मजदूर वर्ग का अंगभूत बुद्धिजीवी बने तो फिर ये सारे किंतु-परंतु, अकारण की विनम्रता खत्‍म हो जाएगी और वह कह उठेगा कि हम जो कर रहे हैं वह बहुत जरूरी है।

Syed Ali Hamid said...

बधाइयां एवं शुभ कामनाएं !

Arun Aditya said...

हजार पोस्ट, हजार बधाइयां।

Sunder Chand Thakur said...

so far so good! sresth kabaad nahin to dhoond kar bhi ajkal kahan milta hai?
keep it up!

Unknown said...

आपकी रहनुमाई में काफिला हजारीबाग तक शान से आया। आगे भी जावेगा। शुक्रिया।

प्रेमलता पांडे said...

बधाई!
हजारों हजार के हजार पोस्ट आअएँ।
हम पाठक हैं।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

अब जब आप सभन ने 'नौ सौ निन्यानबे' सुन ली तो ये हजारी बयान भी सुन ही लेवें -

हां जी, हमने ने हज़ारवी पोस्ट सुन भी ली और पढ़ भी:) चार अंकों पर पहुंचने के लिए ढेर सारी बधाइयाँ॥

ravindra vyas said...

कभी कभी भावुक हो जाता हूं। इसी भावुकता में मूर्खताएं भी कर बैठता हूं। आज फिर भावुक हूं और लगे हाथ यह कहना चाहता हूं कि किसी का दिल दुखाया हो तो माफ कर देना दोस्तों।

कबाड़ियों का यह काफिला बढ़ता रहे, कबाड़ बना रहे, कबाड़ी बने रहें, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ सभी को बधाई।

Arun Aditya said...

हजारवीं पोस्ट। हजारों बधाइयां।

naveen kumar naithani said...

हजारवीं पोस्ट के अवसर पर यह जरूरी लग रहा है कि कबाडी़ जरा इस ढेर से कुछ चुनिंदा सामान (कोई दस नग) अलग से निकाल लें.हम जैसे देर से इस बाजार की तरफ निकलने वालों का भला हो जायेगा.
आमीन

anurag vats said...

bahut bahut badhai...aur aage bhi kabadkhane ko behtar nikalte rahne ki shubhkamnayen...

vipin said...

hazar bahon vale hazari se ab kaun panga lega!
badhayi.
kuch achcha aur alag-sa likhte rahen. vaise likhte likhte syahi sukh jayegi. kyonki alag se admi aurton, bachchon ki sankya dinon din badhthi ja rahi hai. ab ye bahishkrit bharat ya bedakhal hindostan ka kunba bahut badh gaya hai. vaise likhne ke liye sirf unki bebasi nahin hai. unke bhi ranzo-gam hain, mobbat ke afsane hain aur vagaira- vagairah. likhte rahen us admi, aurat ke bare mein jo ek naya pyjama ya lungi ya lugga pakar unse jyada khush hota hai jo designer kapde pahante hain.
vaise lekhak chahe jitna likhen apni rozi-roti ke ganit mein ya phir vaise bhi us admi se utna hi anjan hote jane ke liye abhishapt hain.
vipin

मुनीश ( munish ) said...

My best wishes on the occasion.Incidentally this is Hindi Day which imparts another great dimension to this great journey. Jai Hindi, Jai Hind.

PD said...

कबाड़ियों पर मुझे कितना भरोसा है यह सिद्धेश्वर जी से ज्यादा और कौन् जान सकता है?
पूरी कबाड़ी टीम को बहुत बहुत शुभकामनायें..

अथोक पांदे जी से एक गुहार - लफत्तू के हिसाब से तो आप बहुत होस्यार हैं? तो इतना दिन काहे लगा रहे हैं अगला लपूझन्ना लिखने में? हम जैसे लोग तो दुबरा गये हैं इंतजार करते करते.. :)

प्रीतीश बारहठ said...

हमारे शुक्रिया के लिये भी शुक्रिया !!

कबाड़खाना को मैं ख़जाना ही कहता रहा हूँ।

अब तक के जीवन को बर्बाद करने में दो लतों का हाथ रहा है पहला क्रिकेट दूसरा एक तरफा... प्रेम जैसा कुछ...


अब कबाड़ख़ाना तीसरी लत बनता जा रहा है, ख़ुदा खैर करे !!!

अपने मेल बाद में देखता हूँ पहले कबाड़खाना,

दीपा पाठक said...

बधाई कबाङखाने को और कबाङियों को। एक महत्वपूर्ण सफर का एक खास पङाव। दुनिया भर के साहित्य, संगीत से सजा यह कबाङखाना अपने विविधता भरे कबाङ से हमेशा आबाद रहे। शुभकामनाएं।