Monday, September 7, 2009

तुम्हारी आवाज से जाग रही हैं सूरज की मधुमक्खियाँ



सिद्धेश्वर बाबू ने पोलैन्ड की एक बड़ी कवयित्री हालीना पोस्वियातोव्स्का की कुछ कविताओं के बहुत जानदार अनुवाद भेजे हैं. पेश कर रहा हूं. साथ में लगा हुआ नोट भी उन्हीं का है. ये कविताएं बहुत जल्द प्रकाशित होने वाले हालीना के हमारे साझे अनुवादों का हिस्सा बनने जा रही हैं. हालीना पर मैंने कुछ समय पहले एक पोस्ट लगाई थीं. हिन्दी कविता के अपने पहले गुरुओं में एक सिद्धेश्वर बाबू को दिल से शुक्रिया भी.:

हालीना पोस्वियातोव्सका के जीवन और कविताओं से गुजरते हुए अगर बार - बार निराला की पंक्ति याद आती रही -' दु:ख ही जीवन की कथा रही.'

हिन्दी कविता के प्रेमियों और पाठकों को लग सकता है कि महादेवी वर्मा की याद क्यों नहीं आई? हिन्दी कविता के पढ़ने - पढ़ाने वाली बिरादरी में महादेवी को दु:ख , पीड़ा और विरह का कवि माना जाता है.अपनी बात की तसदीक में उनकी बहुत कविताओं के मुखड़े पेश किए जा सकते हैं , मसलन -

- पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला.

- आज दे वरदान !
वेदने वह स्नेह - अंचल - छाँह का वरदान !


लेकिन इस बात से यह अनुमान न लगा लिया जाय अथवा धारणा न बना ली जाय कि हालीना और महादेवी की कविताओं में कोई समानता है या कि स्त्री होने के कारण व दु:ख तथा प्रेम की घनीभूत सांद्र उपस्थिति के कारण समनता के काव्यमय तंतुजाल तलाश किए जाएं.दोनो की भाषा अलग है , भूगोल अलग है , समय और समाज की निर्मिति व्याप्ति अलग - अलग है फिर भी न जाने क्यों हालीना की कविताओं से गुजरते हुए लगभग पूरा छायावाद याद आता रहा , संभवत: इसलिए भी कि वहाँ जो नहीं है , उसका यहाँ दीखना केवल चमत्कृत और चकित नहीं करता बल्कि हिन्दी कविता के प्रेमी व पाठक होने के नाते इस बात का अनुभव होता है कि अपने निकट के अतीत की हिन्दी कविता में उस पर बात होनी चाहिए जो कि जरूरी था किन्तु छूट गया है. दु:ख और ऊहात्मकता , प्रेम और ऐन्द्रिकता के घालमेल के बाबत जो साफगोई हालिना के यहाँ है , उसका हिन्दी कविता में गैरहाजिर होना खलता तो जरूर है. यही कारण है कि आधुनिक पोलिश कविता के एक सशक्त हस्ताक्षर पर बात करते - करते आधुनिक हिन्दी कविता पर बात करने की जरूरत आन पड़ी. ऐसा इसलिए भी कि यह अनुवाद मूलत: और अंतत: उसी पाठक के लिए है जो कि हिन्दी का पाठक है और उसे विश्व कविता के बरक्स देखने - परखने का हिमायती है.

हालीना पोस्वियातोव्सका की कवितायें पढ़ते समय हम इस बात से सजग रहते हैं कि पोलिश कविता की समृद्ध और गौरवमयी परम्परा में वह एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं .उनकी कवितायें उनके अपने जीवन की ही तरह कलेवर में 'लघु' हैं , न केवल कलेवर में बल्कि कहने अंदाज में भी 'लघु' किन्तु अपनी लघुता व निजता में निरन्तर एक 'रिजोनेन्स' पैदा करती हुई. हालीना की कवितायें यह स्पष्ट और बिना लाग लपेट के बताती हैं कि दरअसल जीवन और मृत्यु के बीच का अंतराल ही हमारी भूमिका है , रंगमंच पर अपना पार्ट अदा करने के वास्ते दिया गया स्पेस . अस्तु , इसी में वह सब कर गुजरना है जिसकी चाह है , इसे नियति मान लेना निष्क्रियता है - एक तरह से अपने से , खुद से नफरत करने जैसा कोई काम. इस आलोक में पेम एक वायवी वस्तु बनकर नहीं रह जाता है और न ही ऐन्द्रिकता सिर्फ देह.जिस तरह प्रकृति में तमाम चीजें प्रकट व विलुप्त होती रहती हैं वैसे ही हालिना की कविताओं में व्याप्त दु:ख और मत्यु की छायाएं अवतरण व अवसान के क्षण हैं न कि उत्पन्न होने और विनष्ट होने की गौरव गाथायें. एक जगह वह कहती हैं -

मैंने अपनी अंतरात्मा के साज दुरुस्त कर लिए हैं
अब गाती है मेरे लिए मिठास
जिस तरह भोर में
गाती है चिड़िया


प्रस्तुत अनुवाद कविता के प्रेमियों के लिए कविता के प्रेमियों द्वारा किया गया अनुवाद है. ऐसे प्रेमियों के लिए जिनकी निगाह में कविता सिर्फ कविता है उसे किसी एक भाषा की सीमा में महदूद कर देखने हामी नहीं. यह विश्व कविता की विपुल थाती से लिया गया एक कण भर है शायद ! साथ ही यह कहने में कोई संकोच नहीं है पोलिश कविता की समृद्ध और गौरवमयी परम्परा से रू - ब-रू होने के लिए हालीना पोस्वियातोव्सका की कविताओं को देखना - परखना बहुत जरूरी है.

जहाँ तक अपनी जानकारी है हिन्दी में हालीना की कविताओं अनुवाद -उपस्थिति बहुत विरल है. यही कारण था कि इस नोट का एक हिस्सा हिन्दी कविता के बाबत सायास लिखा गया . देखते हैं इस विरलता को सरलता में बदलने के काम में ( नवारुण भट्टाचार्य के शब्दों में कहें तो ) - 'आखिर एक किताब मचा सकती है कितना कोलाहल !'

१. कुछ अंतरे मालगोसिआ के लिए

*
तुम जब आते हो
मुख पर आ जाती है मुस्कान
और मैं दरपन हो जाती हूँ
आँखों में भर जाता है चौंधापन
तुम जब देखना चाहते हो मुझमें अपनी तस्वीर.
सेब और चेरी से भरी, भारी- भरपूर हाथों के साथ
खुद को पाती हूँ बगीचे में
तुम जब आते हो .

तुम्हारी भूख के लिए
मेरे पास रखे होते हैं फल
और प्यास के वास्ते घास के मैदानों की नमी
खुली खिड़की से उठँगी हुई मैं
आकुल हो तकती हूँ रात को
और सितारे बन जाते हैं मेरी आँख

**

मेरे प्यार ! अभी कायदे से नहीं हुई है भोर
पंखों की नर्म चादर ओढ़े सो रहे हैं परिन्दे
तुम्हारी आवाज से जाग रही हैं सूरज की मधुमक्खियाँ
और नींद से भरे मेरे माथे के गिर्द डोल रही हैं
मेरी पलकों की नीरवता को तोड़ रहे हैं तुम्हारी आहट के झींगुर
और परिन्दे अब भी सो रहे हैं.

अभी बहुत जल्दी है मेरे प्यार !
मेरे घर , मेरे आकाश में
तुम्हारे चुम्बन से उदित होता है उष:काल
पापलर की डोलती पत्तियों पर सूर्योदय उकेरता है रेखाचित्र
जिन पर सुबह चमक रही है बूँद - बूँद
तुम्हारे रसपान के वास्ते ही तैयार किया गया है यह आसव
गो कि गहरी नींद में डूबे सोए पड़े है पेड़.


२.मैं तुम्हारे बारे में लिखना चाहती हूँ


मैं तुम्हारे बारे में लिखना चाहती हूँ
तिरछी बाड़ फुसफुसाती है तुम्हारा नाम
तुम्हारे होठॊं के बारे में लिखना चाहती हूँ -
बर्फबारी में जमा हुआ चेरी वृक्ष.

मैं लिखना चाहती हूँ कुछ लहरदार सतरें
तुम्हारी काली बरौनियों - पलकों के बारे में
अपनी उँगलियों की सलाइयों से
बुनना चाहती हूँ तुम्हारे बाल.
खोजना चाहती हूँ तुम्हारे कंठ में फँसी हुई फाँस
जिससे मफलर की मानिन्द लिपटी हैं अस्फुट आवाजें.

मैं चाहती हूँ कि
सितारों में घोल दूँ तुम्हारा नाम
रुधिर बनकर तुम्हारे भीतर बहना चाहती हूँ
संग - साथ रहने की साध भर नहीं
रात में भीगी हुई बारिश की बूँद सरीखी मैं
तुम्हारे भीतर लुप्त हो जाना चाहती हूँ .

हाँ, ऐसा ही कुछ चाहती हूँ मैं
ऐसा ही लिखना चाहती हूँ.


३. मेरा प्रियतम उतना खूबसूरत नहीं है


मेरा प्रियतम उतना खूबसूरत नहीं है
सीदी - सादी है उसकी फितरत.
अगर उसे पलटने से बरज दूँ
तो मेरे आसमान की घनीभूत दोपहर में
कौन करेगा जामुनी रंगों की चित्रकारी.
उसके होंठ हैं दहकते हुए अंगार
और जब वह हँसता है
तो दमकती है दाँतों की नुकीली धवल पंक्ति
मानो दुनियावी चुनौतियों के बरक्स एक माकूल जवाब.

मेरी हर रात के आसमान पर
उदित होता है प्रियतम का अर्धचन्द्राकार आनन
वह कमसिन मिजाज नहीं है
गलियों की ज्यामितीय रूपाकारों में
नाचते ही रहते हैं उसके नैन
युवतियों में धधकाते हुए अग्नि - ज्वाल.
उसके बालों में हाथ डाल
परछाँई को पकड़ लेती हूँ मैं
और एक अधखिले दुबले नुकीले तृण की छाँव
बन जाती है अप्रेल मास के सेब की गठीली गाछ.


४.उसने कहा - 'मैंने किया प्रेम'


उसने कहा - 'मैंने किया प्रेम'
- यह उसने कहा.

अब मैं उसकी मुस्कान में जिन्दा हूँ
बीती रात
जी भर निहारी थी जिसकी शोभा
और मन भर किया था गुणगान
उसी युवा स्प्रूस के छरहरे तने में
टटोलती - तलाशती हूँ कूल्हों की रूपाकृति.

इससे पहले कि
मेरे लरजते हाथों में
अंगूठे के कोरों पर भार धरे पैरों में
दाँतों की पाँत में
वह रोप दे
इच्छाओं की गुनगुनाती पौध.
घेर लेता है अजब नैराश्य
अपने ही हथेली पर अपनी ही ठोड़ी टेक
सोचती हूँ त्वचा के बारे में
जिसका तीखा चरपरा सुनहरा स्वाद
रह गया है याद.


५.तुम्हारी सुघड़ उँगलियों में


मैं एक सिहरन हूँ
फक़त एक लरज
तुम्हारी सुघड़ उँगलियों में सँजोयी हुई.
तुम्हारे तप्त होंठों के भार तले
दबी हुई पत्तियों का गीत हूँ मैं.

तुम्हारी गमक परेशान करती है - बताती है - तुम्हारा होना
तुम्हारी गमक परेशान करती है - अपने साथ लिए चली जाती है रात
तुम्हारी सुघड़ उँगलियों में
मैं एक रोशनी हूँ - एक उजास.

मृत अँधियारे दिन के ऊपर
मैं हरे चन्द्रमाओं के साथ चमकती हूँ
अचानक
तुम्हें पता चलता है कि मेरे होंठ हैं सुर्ख
-और उनके भीतर बह रहा है
नमकीन स्वाद से लबरेज लहू.

(नोट और अनुवाद सरताज कबाड़ी सिद्धेश्वर सिंह के)

11 comments:

शायदा said...

shandar. abhee ek hi baar padha. comment karne layak shabd nahi juta saki. der raat shayad possible ho ek aur comment. na bhee to samajhiyega k mere pas shabd vashtav me kam reh gaye. abhee kai baar padhungi.

शायदा said...
This comment has been removed by a blog administrator.
Udan Tashtari said...

शानदार और जबरदस्त रचनाऐं..आभार पढ़वाने का.

अमिताभ मीत said...

शुक्रिया शुक्रिया अशोक भाई. बेहतरीन कवितायें ....

कामता प्रसाद said...

ऊहात्मकता यह टाइपिंग मिस्‍टेक है या हिंदी का कोई शब्‍द है, अंग्रेजी समतुल्‍य बतायें या हिंदी में ही समझा दें।
अभी पहली मंजिल का पाठक हूं और भाषा के अवरोध को तोड़ रहा हूं। ध्‍यान रहे टाइपिंग की कुछ गल्तियां छूट रही हैं।

पारुल "पुखराज" said...

kash ye panno pe likhi miltin....to ek ek kavita dhhere dheere ..baar baar ..laut laut padhi jaati..AABAAR...

siddheshwar singh said...

ऊहात्मकता हिन्दी की रीतिकालीन कविता की आलोचना से जुड़ा शब्द है जिसका आशय अतिशय अतिरंजनापूर्ण अभिव्यक्ति से लिया जाता है.

Pearl Arts said...

शुक्रिया

ravindra vyas said...

bahut sunder hain. aur anuvaad bhi bahut achhha hai.

प्रीतीश बारहठ said...

मारीना से तो परिचय था, हालीना के परिचय के लिये शुक्रिया। कविताएं तो ऊहात्मक हैं ही......

शरद कोकास said...

सिद्धेश्वर जी सबसे पहले तो इस बात के लिये धन्यवाद कि हालीना पोस्वियातोव्स्का की कविताओं से आपने साक्षात्कार करवाया । पोलिश कविताओं मे पीड़ा का जो चित्रण है उसके एक अंश का विस्तार इन कविताओं मे दिखाई देता है जन्म और म्रत्यु के बीच का स्पेस यद्यपि इनमे है और निजता के विविध आयाम यहाँ उपस्थित है फिर भी दुख की छाया यहाँ सम्मोहित करती है देश काल के अनुसार यह कवितायें महादेवी की कविताओं से प्रभाव मे बिलकुल भिन्न है लेकिन कहीं कहीं प्रेम और विरह के सन्दर्भ मे यह अम्रता प्रीतम की कविताओं के करीब लगती है । -आपका नोट एक ज़रूरी tool है इन कविताओं को समझनए के लिये -शरद कोकास दुर्ग छ,ग,