पाब्लो नेरूदा का पहला काव्य संग्रह था 'वेइन्ते पोएमास दे आमोर ई ऊना कान्सीयोन देसएस्पेरादा' (बीस प्रेम कविताएं और हताशा का एक गीत)। १९२४ में इस पतली सी किताब के प्रकाशित होने के बाद पाब्लो विश्वविख्यात नाम हो गये। फ़कत बीस साल की उम्र थी तब उनकी।
यह इन कविताओं में पूरी ईमानदारी से बयान किया हुआ युवा नेरूदा का अगाध प्रेम और उस से उपजी हताशा और कुंठा सब मिलकर इस संग्रह को कालजयी बना चुके हैं। जब मैं १९९४-९५ के समय वेनेज़ुएला में था, इस संग्रह की यह ख़ास कविता ने मुझे कई और कारणों से आकर्षित किया था। मौज मस्ती पसन्द करने वाले लातीन अमरीकी स्त्रियों के बीच यह कविता ख़ासी लोकप्रिय थी और पार्टी वगैरह में ज़रा सा इसरार करने पर वे इसे सुनाने को भी तैयार हो जाती थीं; यहां यह बात अलहदा है कि गीत का अन्त आते आते वे बाकायदा रोना शुरू कर देती थीं और यह रोना हर दफ़ा होता था. नेरूदा की कविताएं गाई जाती हैं, उन्हें पता नहीं कितने लोगों ने अपनी आवाज़ दी है और विशेषतः इस वाली कविता के तो संभवतः पांच सौ से ज़्यादा अलग-अलग रेकॉर्ड्स इत्यादि उपलब्ध हैं. होसे हुआन तोर्रेस की आवाज़ में आप भी सुनिये इस अद्भुत कविता को. हो सकता है स्पानी भाषा समझ में न आये, पर उसकी मिठास को और उस के दर्द को अनुभव कीजिए. आगे कविता का अनुवाद भी दिया गया है:
अब प्रस्तुत है कविता का अनुवाद:
लिख सकता हूं आज की रात बेहद दर्दभरी कविताएं
लिख सकता हूं उदाहरण के लिये: "तारों भरी है रात
और तारे हैं नीले, कांपते हुए सुदूर"
रात की हवा चक्कर काटती आसमान में गाती है.
लिख सकता हूं आज की रात बेहद दर्दभरी कविताएं
मैंने प्रेम किया उसे और कभी कभी उसने भी प्रेम किया मुझे
ऐसी ही रातों में मैं थामे रहा उसे अपनी बांहों में
अनन्त आकाश के नीचे मैंने उसे बार-बार चूमा.
उसने प्रेम किया मुझे और कभी-कभी मैंने भी प्रेम किया उसे.
कोई कैसे प्रेम नहीं कर सकता था उसकी महान और ठहरी हुई आंखों को.
लिख सकता हूं आज की रात बेहद दर्दभरी कविताएं.
सोचना कि मेरे पास नहीं है वह. महसूस करना कि उसे खो चुका मैं.
सुनना इस विराट रात को जो और भी विकट उसके बग़ैर.
और कविता गिरती है आत्मा पर जैसे चरागाह पर ओस.
अब क्या फ़र्क़ पड़ता है कि मेरा प्यार संभाल नहीं पाया उसे.
तारों भरी है रात और वह नहीं है मेरे पास.
इतना ही है. दूर कोई गा रहा है. दूर.
मेरी आत्मा संतुष्ट नहीं है कि वह खो चुकी उसे.
मेरी निगाह उसे खिजने की कोशिश करती है जैसे इस से वह नज़दीक आ जाएगी.
मेरा दिल खोजता है उसे और वह नहीं है मेरे पास.
वही रात धवल बनाती उन्हीं पेड़ों को
हम उस समय के, अब वही नहीं रहे.
मैं उसे और प्यार नहीं करता, यह तय है पर कितना प्यार उसे मैंने किया
मेरी आवाज़ ने हवा को खोजने की कोशीस की ताकि उसे सुनता हुआ छू सकूं
किसी और की. वह किसी और की हो जाएगी. जैसी वह थी
मेरे चुम्बनों से पहले. उसकी आवाज़ उसकी चमकदार देह उसकी अनन्त आंखें
मैं उसे प्यार नहीं करता यह तय है पर शायद मैं उसे प्यार करता हूं
कितना संक्षिप्त होता है प्रेम, भुला पाना कितना दीर्घ.
क्योंकि ऐसी ही रातों में थामा किया उसे मैं अपनी बांहों में
मेरी आत्मा संतुष्ट नहीं है कि वह खो चुकी उसे.
हालांकि यह आख़िरी दर्द है जो सहता हूं मैं उसके लिये
और ये आख़्रिरी उसके लिये कविताएं जो मैं लिखता हूं.
(संवाद प्रकाशन द्वारा प्रकाशित 'बीस प्रेम कविताएं और हताशा का एक गीत' से)
नेरूदा की एक और कविता कबाड़ख़ाने में यहां सुनी और पढ़ी जा सकती है. कबाड़ख़ाने पर ही नेरूदा से सम्बन्धित एक और लेख यहां देखें.